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________________ प्रस्तावना श्री स्थानाङ्ग सूत्र माना है-लोभज, दोषज और मोहज। इनमें भी सबसे अधिक मोहज को दोषजनक माना है।। स्थानांग2 में जातिमद, कुलमद, बलमद, रूपमद, तपोमद, श्रुतमद, लाभमद और ऐश्वर्यमद ये आठ मदस्थान बताये हैं, तो अंगुत्तरनिकाय में मद के तीन प्रकार बताये हैं-यौवन, आरोग्य और जीवितमद। इन मदों से मानव दराचारी बनता है। स्थानांग' में आश्रव के निरोध को संवर कहा है और उसके भेद-प्रभेदों की चर्चा भी की गयी है। तथागत बुद्ध ने अंगुत्तरनिकाय में कहा है कि आश्रव का निरोध केवल संवर से ही नहीं होता प्रत्युत:-१. संवर से, २. प्रतिसेवना से, ३. अधिवासना से, ४. परिवर्जन से, ५. विनोद से, ६. भावना से होता है, इन सभी में भी अविद्यानिरोध को ही मुख्य आश्रवनिरोध माना है। - स्थानांग' में अरिहन्त, सिद्ध, साधु, धर्म इन चार शरणों का उल्लेख है, तो बुद्ध ने 'बुद्धं सरणं गच्छामि, धम्मं सरणं गच्छामि, संघं सरणं गच्छामि' इन तीन को महत्त्व दिया है। स्थानांग में श्रमणोपासकों के लिए पाँच अणुव्रतों का उल्लेख है तो अंगुत्तरनिकाय में बौद्ध उपासकों के लिए पाँच शील का उल्लेख है। प्राणातिपातविरमण, अदत्तादानविरमण, कामभोगमिथ्याचार से विरमण, मृषावाद से विरमण, सुरा-मेरिय मद्य-प्रमाद स्थान से विरमण। स्थानांगा में प्रश्न के छह प्रकार बताये हैं-संशयप्रश्न, मिथ्याभिनिवेशप्रश्न, अनुयोगी प्रश्न, अनुलोमप्रश्न, जानकर किया गया प्रश्न, न जानने से किया गया प्रश्न। अंगुत्तरनिकाय1 में बुद्ध ने कहा- 'कितने ही प्रश्न ऐसे होते हैं, जिनके एक अंश का उत्तर देना चाहिए। कितने ही प्रश्न ऐसे होते हैं जिनका प्रश्नकर्ता से प्रतिप्रश्न कर उत्तर देना चाहिए। कितने ही प्रश्न ऐसे होते हैं, जिनका उत्तर नहीं देना चाहिए।' स्थानांग में छह लेश्याओं का वर्णन हैं।12 वैसे ही अंगुत्तरनिकाय13 में पूरणकश्यप द्वारा छह अभिजातियों का उल्लेख है, जो रंगों के आधार पर निश्चित की गयी हैं। वे इस प्रकार हैं. १. कृष्णाभिजाति - बकरी, सुअर, पक्षी और पशु-पक्षी पर अपनी आजीविका चलानेवाला मानव कृष्णाभिजाति है। २. नीलाभिजाति - कंटकवृत्ति भिक्षुक नीलाभिजाति है। बौद्धभिक्षु और अन्य कर्म करने वाले .. भिक्षुओं का समूह। ३. लोहिताभिजाति ... - एकशाटक निर्ग्रन्थों का समूह। ४. हरिद्राभिजाति - श्वेतवस्त्रधारी या निर्वस्त्र। ५. शुक्लाभिजाति - आजीवक श्रमण-श्रमणियों का समूह। ६. परमशुक्लाभिजाति - आजीवक आचार्य, नन्द, वत्स, कृश, सांकृत्य, मस्करी, गोशालक आदि का समूह। - आनन्द ने गौतम बुद्ध से इन छह अभिजातियों के सम्बन्ध में पूछा-तो उन्होंने कहा कि मैं भी छह अभिजातियों की प्रज्ञापना करता हूँ। १. कोई पुरुष कृष्णाभिजातिक (नीच कुल में उत्पन्न) होकर कृष्णकर्म तथा पापकर्म करता है। 1. अंगुत्तरनिकाय ३-९७, ३-३९ 2. स्थानांग ६०६ 3. अंगुत्तरनिकाय ३/३९ 4. स्थानांग ४२७ 5. अंगुत्तरनिकाय ६/५८ 6, अंगुत्तरनिकाय ६/६३ 7. स्थानांगसूत्र ४ 8. स्थानांग, स्थान ५ 9. अंगुत्तरनिकाय, ८-२५ 10. स्थानांग, स्थान ६, सूत्र ५३४ • 11. अंगुत्तरनिकाय-४२ 12. स्थानांग ५१ 13. अंगुत्तर निकाय ६/६/३, भाग ३ पृ. ३५, ९३-९४
SR No.005768
Book TitleSthanang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages484
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_sthanang
File Size12 MB
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