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प्रस्तावना
भी इन विषयों का इस रूप में निरूपण हुआ है।
स्थानांग 1 सूत्र के पचपनवें सूत्र में आर्द्रा नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र का वर्णन है। वही वर्णन "समवायांग' और सूर्यप्रज्ञप्ति में भी है।
स्थानांग के सूत्र तीन सौ अट्ठावीस में अप्रतिष्ठान नरक, जम्बूद्वीप, पालकयानविमान आदि का वर्णन है। उसकी तुलना समवयांग' के उन्नीस, बीस, इकवीस और बावीसवें सूत्र से की जा सकती है, और साथ ही जम्बूद्वीपप्रज्ञ और प्रज्ञापना' पद से भी ।
स्थानांग के ९५ वें सूत्र में जीव - अजीव आवलिका का वर्णन है। वही वर्णन समवायांग, प्रज्ञापना 10, जीवाभिगम 11, उत्तराध्ययन12 में है।
स्थानांग 13 के सूत्र ९६ में बन्ध आदि का वर्णन है । वैसा वर्णन प्रश्नव्याकरण 14, प्रज्ञापना 15, और उत्तराध्ययन16 सूत्र में भी है।
स्थानांगसूत्र 17 के ११० वें सूत्र में पूर्व भाद्रपद आदि के तारों का वर्णन है तो सूर्यप्रज्ञप्ति 18 और समवायांग 19 में भी यह वर्णन मिलता है।
श्री स्थानाङ्ग सूत्र
स्थानांगसूत्र 20 के १२६ वें सूत्र में तीन गुप्तियों एवं तीन दण्डकों का वर्णन है । समवायांग 21 प्रश्नव्याकरण 22 उत्तराध्ययन23 और आवश्यक 24 में भी यह वर्णन है।
स्थानांगसूत्र 25 के १८२ वें सूत्र में उपवास करनेवाले श्रमण को कितने प्रकार का पानी लेना कल्पता है, वह वर्णन समवायांग26, प्रश्नव्याकरण? 7, उत्तराध्ययन28 और आवश्यक सूत्र 29 में प्रकारान्तर से आया है।
स्थानांगसूत्र 30 के २१४ वें सूत्र में विविध दृष्टियों से ऋद्धि के तीन प्रकार बताये हैं । उसी प्रकार का वर्णन समवायांग 31 प्रश्नव्याकरण 32 में भी आया है।
स्थानांगसूत्र 33 के २२७वें सूत्र में अभिजित, श्रवण, अश्विनी, भरणी, मृगशिर, पुष्य, ज्येष्ठा के तीन-तीन तारे कहे हैं। वही वर्णन समवायांग 34 और सूर्यप्रज्ञप्ति में भी प्राप्त है।
स्थानांगसूत्र 36 के २४७ वें सूत्र में चार ध्यान और प्रत्येक ध्यान के लक्षण, आलम्बन बताये गये हैं, वैसा ही वर्णन समवायांग 37, भगवती 38 और औपपातिक 39 में भी है।
उनकी उत्पत्ति के कारण आदि निरूपित हैं। वैसा ही
स्थानांगसूत्र 10 के २४९वें सूत्र में चार कषाय, समवायांग11 और प्रज्ञापना 12 में भी वह वर्णन है ।
1. स्थानांगसूत्र, सूत्र ५५ 2. समवायांगसूत्र, २३, २४, २५ 3 सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा. १०, प्रा. ९4. स्थानांगसूत्र, सूत्र ३२८ 5. समवायांगसूत्र, सम. १, सूत्र १९, २०, २१, २२ 6. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, वक्ष १, सूत्र ३ 7. प्रज्ञापनासूत्र, पद २ 8 स्थानांगसूत्र, अ. ४, उ. ४, सूत्र ९५ 9. समवायांगसूत्र, १४९ 10. प्रज्ञापना, पद १, सूत्र १ 11 जीवाभिगम, प्रति. १, सूत्र १ 12. उत्तराध्ययन, अ. ३६ 13. स्थानांगसूत्र, अ. २, उ. ४, सूत्र ९६ 14 प्रश्नव्याकरण, ५ वाँ 15. प्रज्ञापना, पद २३ 16. उत्तराध्ययन सूत्र, अ. ३१ 17. स्थानांगसूत्र, अ. २, उ. ४, सूत्र ११० 18. सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा. १०, प्रा. ९, सूत्र ४२ 19. समवायांगसूत्र, सम. २, सूत्र ५. 20. स्थानांगसूत्र, अ. ३, उ. १, सूत्र १२६ 21. समवायांग, सम. ३, सूत्र १ 22 प्रश्नव्याकरणसूत्र, ५ वाँ संवरद्वार 23. उत्तराध्ययनसूत्र, अ. ३१ 24. आवश्यकसूत्र, अ. ४ 25. स्थानांगसूत्र, अ. ३, उ. ३, सूत्र १८२ 26. समवायांग, सम. ३, सूत्र ३ 27. प्रश्नव्याकरणसूत्र, ५ वाँ संवरद्वार 28. उत्तराध्ययन, अ. ३१ 29: आवश्यकसूत्र, अ. ४30. स्थानांग, अ. ३, उ. ४, सूत्र २१४ 31. समवायांग, सम. ३, सूत्र ४ 32 प्रश्नव्याकरण, ५ वाँ संवरद्वार 33. स्थानांग, अ. ३, उ. ४, सूत्र २२७ 34. समवायांग, ३, सूत्र ७ 35. सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा. १०, प्रा. ९, सूत्र ४२ 36. स्थानांगसूत्र, अ. ४, उ. १, सूत्र २४७ 37. समवायांग, सम. ४, सूत्र २ 38. भगवती, शत. २५, उ. ७, सूत्र २८२ 39 औपपातिकसूत्र ३० 40. स्थानांग, अ. ४, उ. १, सूत्र २४९ 41. समवायांग, सम. ४, सूत्र १ 42. प्रज्ञापना, पद. १४, सूत्र १८६
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