SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना श्री स्थानाङ्ग सूत्र जो नियम अन्य आगमों में बहुत विस्तार के साथ आये हैं, उनका संक्षेप में यहाँ सूचन किया है। जिससे श्रमण उन्हें स्मरण रखकर सम्यक् प्रकार से उनका पालन कर सके । तुलनात्मक अध्ययन : आगम के आलोक में स्थानांग सूत्र में शताधिक विषयों का संकलन हुआ है। इसमें जो सत्य-तथ्य प्रकट हुए हैं उनकी प्रतिध्वनि अन्य आगमों में निहारी जा सकती है। कहीं-कहीं पर विषय साम्य हैं तो कहीं-कहीं पर शब्द साम्य है। स्थानांग के विषयों की अन्य आगमों के साथ तुलना करने से प्रस्तुत आगम का सहज की महत्त्व परिज्ञात होता है। हम यहाँ बहुत ही संक्षेप में स्थानांगगत विषयों की तुलना अन्य आगमों के आलोक में कर रहे हैं। "एगे आया " । यही सूत्र समवायांग 2 में भी शब्दशः मिलता है। भगवती' में स्थानांग में द्वितीय सूत्र है इसीका द्रव्य दृष्टि से निरूपण है। स्थानांग का चतुर्थ सूत्र "एगा किरिया " ་ प्रज्ञापना7 में भी क्रिया के सम्बन्ध में वर्णन हैं। 14 समवायांग में भी इसका शब्दशः उल्लेख है। भगवती और स्थानांग में पाँचवाँ सूत्र है - "एगे लोए " ! समवायांग में भी इसी तरह का पाठ है। भगवती 10. और औपपातिक11 में भी यही स्वर मुखरित हुआ है। स्थानांग 12 में सातवाँ सूत्र है - "एगे धम्मे । " समवायांग 13 में भी यह पाठ इसी रूप में मिलता है। सूत्रकृतांग 14 और भगवती 15 में भी इसका वर्णन है । स्थानांग 16 का आठवाँ सूत्र है - "एगे अधम्मे" । समवायांग 17 में यह सूत्र इसी रूप में मिलता है। सूत्रकृतांग 18 और भगवती 19 में भी इस का वर्णन है। स्थांनांग20 का ग्यारहवाँ सूत्र है - "एगे पुण्णे" । समवायांग 21 में भी इसी तरह का पाठ है, सूत्रकृतांग 22 और औपपातिक 23 में भी यह विषय इसी रूप मिलता है। स्थानांग24 का बारहवाँ सूत्र है - "एगे पावे" । समवायांग 25 में यह सूत्र इसी रूप में आया है । सूत्रकृतांग 26 और औपपातिक27 में भी इसका निरूपण हुआ है। स्थानांग 28 का नवम सूत्र "एगे बन्धे" है और दशवाँ सूत्र "एगे मोक्खे" है। समवायांग 29 में ये दोनों सूत्र इसी रूप में मिलते हैं। सूत्रकृतांग 30 और औपपातिक 31 में भी इसका वर्णन हुआ है। स्थानांग 32 का तेरहवाँ सूत्र "एगे आसवे" चौदहवाँ सूत्र "एगे संवरे" पन्द्रहवाँ सूत्र "एगा वेयणा" और सोलहवाँ सूत्र "एगा निर्जरा" हैं। यही पाठ समवायांग 33 में मिलता है और सूत्रकृतांग 34 और औपपातिक 35 में 1. स्थानांगसूत्र, स्थान १० सूत्र २ – मुनि कन्हैयालालजी सम्पादित 2. समवायांगसूत्र, समवाय- १०, सूत्र - १ 3. भगवतीसूत्र, शतक १२, उद्दे. १० 4. स्थानांग, अ. १, सूत्र ४, 5. समवायांग, सम. १, सूत्र ५ 6. भगवती, शतक १, उद्दे. ६ 7 प्रज्ञापनासूत्र, पद ७ ९ १६ 8. स्थानांग, अ. १, सूत्र ५, 10. भगवती, शत. १२, उ. ७, सूत्र ७ 11. औपपातिक, सूत्र ५६ 12. स्थानांग, अ. १, सूत्र 14. सूत्रकृतांग, श्रु. २, अ. ५ 15. भगवती, शत. २० उ. २ 16. स्थानांग, अ. १, सूत्र ८ 18. सूत्रकृतांग, श्रु. २, अ. ५ 19. भगवती, शत. २०, उ. २ 20. स्थानांग, अ. १, सूत्र ११ 22 सूत्रकृतांग, श्रु. २, अ. ५ 23. औपपातिक, सूत्र ३४ 24. स्थानांगसूत्र, अ. १, सूत्र १२ 25. समवायांग १, सूत्र १२ 26. सूत्रकृतांग, श्रु. २, अ. ५ 27. औपपातिक, सूत्र ३४ 28. स्थानांग, अ. १, सूत्र ९, १० 29. समवायांगसूत्र १, सम. १, सूत्र १३, १४ 30 सूत्रकृतांगसूत्र, श्रु.२, अ. ५ 31. औपपातिकसूत्र ३४ 32. स्थानांगसूत्र, अ. १, सूत्र १३, १४, १५, १६ 33 समवायांगसूत्र, सम. १, सूत्र १५, १६, १७, १८ 9. समवायांग, सम. १, सूत्र ७ 13. समवायांग, सम. १, सूत्र 17. समवायांग, सम. १, सूत्र १० 21. समवायांग, सम. १, सूत्र ११ 34. सूत्रकृतांगसूत्र, श्रुत. २, अ. ५ 35. औपपातिकसूत्र ३४ xxxviii
SR No.005768
Book TitleSthanang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages484
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_sthanang
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy