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प्रस्तावना
श्री स्थानाङ्ग सूत्र
सहज घृपा होती है। आवश्यकचूर्णि, महावीरचरियं आदि में यह स्पष्ट बताया गया है कि भगवान् महावीर को नग्नता के कारण अनेक बार कष्ट सहन करने पड़े थे। प्रस्तुत स्थान में अनेक महत्त्वपूर्ण बातों का उल्लेख है तीन कारणों से अल्पवष्टि, अनावष्टि होती है। माता-पिता और आचार्य आदि के उपकारों से उऋण नहीं बना जा सकता। __चतुर्थ स्थान में चार की संख्या से सम्बद्ध विषयों का आकलन किया गया है। यह स्थान भी चार उद्देशकों में विभक्त है। तत्त्व जैसे दार्शनिक विषय को चौ-भंगियों के माध्यम से सरल रूप में प्रस्तुत किया गया है। अनेक चतुर्भङ्गियाँ मानव-मन का सफल चित्रण करती हैं। वृक्ष, फल, वस्त्र आदि वस्तुओं के माध्यम से मानव की मनोदशा का गहराई से विश्लेषण किया गया है। जैसे कितने ही वृक्ष मूल में सीधे रहते हैं, पर ऊपर जाकर टेढ़े बन जाते हैं। कितने ही मूल में सीधे रहते हैं और सीधे ही ऊपर बढ़ जाते हैं। कितने ही वृक्ष मूल में भी टेढ़े होते हैं और ऊपर जाकर के भी टेढ़े ही होते हैं। और कितने ही वृक्ष मूल में टेढ़े होते हैं और उपर जाकर सीधे हो जाते हैं। इसी तरह मानवों का स्वभाव होता है। कितने ही व्यक्ति मन में सरल होते हैं और व्यवहार से भी। कितने ही व्यक्ति हृदय से सरल होते हुए भी व्यवहार से कुटिल होते हैं। कितने ही व्यक्ति मन में सरल नहीं होते और बाह्य परिस्थितिवश सरलता का प्रदर्शन करते हैं, तो कितने ही व्यक्ति अन्तर से भी कुटिल होते हैं। . विभिन्न मनोदशा के लोग विभिन्न युग में होते हैं। देखिये कितनी मार्मिक चतुभंगी-कितने ही मानव आम्रप्रलम्ब कोरक के सदृश होते हैं, जो सेवा करने वाले का योग्य समय में योग्य उपकार करते हैं। कितने ही
तम्ब कोरक के सदश होते हैं. जो दीर्घकाल तक सेवा करने वाले का अत्यन्त कठिनाई से योग्य उपकार करते हैं। कितने ही मानव वल्लीप्रलम्ब कोरक के सदृश होते हैं, जो सेवा करने वाले का सरलता से शीघ्र ही उपकार कर देते हैं। कितने ही मानव मेषविषाण कोरक के सदृश होते हैं, जो सेवा करने वाले को केवल मधुर-वाणी के द्वारा प्रसन्न रखना चाहते हैं। किन्तु उसका उपकार कुछ भी नहीं करना चाहते। .. प्रसंगवश कुछ कथाओं के भी निर्देश प्राप्त होते हैं, जैसे अन्तक्रिया करने वाले चार व्यक्तियों के नाम मिलते हैं। भरत चक्रवर्ती, गजसुकुमाल, सम्राट सनत्कुमार और मरुदेवी। इस तरह विविध विषयों का संकलन है। यह स्थान एक तरह से अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक सरस और ज्ञानवर्धक है। ____ पाँचवें स्थान में पाँच की संख्या से सम्बन्धित विषयों का संकलन हुआ है। यह स्थान तीन उद्देशकों में विभाजित है। तात्त्विक, भौगोलिक, ऐतिहासिक, ज्योतिष, योग, प्रभृति अनेक विषय इस स्थान में आये हैं। कोई वस्तु अशुद्ध होने पर उसकी शुद्धि की जाती है। पर शुद्धि के साधन एक सदृश नहीं होते। जैसे मिट्टी शुद्धि का साधन है। उससे बर्तन आदि साफ किये जाते हैं। पानी शुद्धि का साधन है। उससे वस्त्र आदि स्वच्छ किये जाते हैं। अग्नि शुद्धि का साधन है। उससे स्वर्ण, रजत आदि शुद्ध किये जाते हैं। मन्त्र भी शुद्धि का साधन है, जिससे वायुमण्डल शुद्ध होता है। ब्रह्मचर्य शुद्धि का साधन है। उससे आत्मा विशुद्ध बनता है।
प्रतिमा साधना की विशिष्ट पद्धति है। जिसमें उत्कृष्ट तप की साधना के साथ कायोत्सर्ग की निर्मल साधना चलती है। इसमें भद्रा, सुभद्रा, महाभद्रा, सर्वतोभद्रा और भद्रोतरा प्रतिमाओं का उल्लेख है। जाति, कुल, कर्म, शिल्प और लिङ्ग के भेद से पाँच प्रकार का आजीविका का वर्णन है। गंगा, यमुना, सरयु, ऐरावती और माही नामक महानदियों को पार करने का निषेध किया गया है। चौबीस तीर्थंकरों में से वासुपूज्य, मल्ली, अरिष्टनेमि, पार्श्व और महावीर ये पाँच तीर्थंकर कुमारावस्था में प्रव्रजित हुए थे आदि अनेक महत्त्वपूर्ण उल्लेख प्रस्तुत स्थान में हुए हैं।
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