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श्री स्थानाङ्ग सूत्र
प्रस्तावना
समवायाङ्ग की अपेक्षा नन्दीसूत्र में विषयसूची संक्षिप्त क्यों हुई ? यह आगम-मर्मज्ञों के लिए चिन्तनीय प्रश्न है । '
समवायाङ्ग के अनुसार स्थानाङ्ग की विषयसूची इस प्रकार है
१. स्वसिद्धान्त, परसिद्धान्त और स्व-पर- सिद्धान्त का वर्णन ।
२. जीव, अजीव और जीवाजीव का कथन |
३. लोक, अलोक और लोकालोक का कथन ।
४. द्रव्य के गुण और विभिन्न क्षेत्रकालवर्ती पर्यायों पर चिन्तन ।
५. पर्वत, पानी, समुद्र, देव, देवों के प्रकार, पुरुषों के विभिन्न प्रकार, स्वरूप, गोत्र, नदियों, निधियों और ज्योतिष्क देवों की विविध गतियों का वर्णन |
६. एक प्रकार, दो प्रकार, यावत् दस प्रकार के लोक में रहने वाले जीवों और पुद्गलों का निरूपण किया
गया है।
नन्दीसूत्र में स्थानाङ्ग की विषयसूची इस प्रकार है- प्रारम्भ में तीन नम्बर तक समवायाङ्ग की तरह ही विषय का निरूपण है किन्तु व्युत्क्रम से है। चतुर्थ और पांचवें नम्बर की सूची बहुत ही संक्षेप में हैं। जैसे टक, कूट, शैल, शिखरी, प्राग्भार, गुफा आकर, द्रह और सरिताओं का कथन है । छट्टे नम्बर में कही हुई बात नन्दी में भी इसी प्रकार है।
समवायाङ्ग' व नन्दीसूत्र 2 के अनुसार स्थानाङ्ग की वाचनाएँ संख्येय हैं, उसमें संख्यात श्लोक हैं, संख्यात संग्रहणियाँ है। अंगसाहित्य में उसका तृतीय स्थान है । उसमें एक श्रुतस्कन्ध है, दश अध्ययन हैं। इक्कीस उद्देशकाल हैं। बहत्तर हजार पद हैं। संख्यात अक्षर हैं। यावत् जिनप्रज्ञप्त पदार्थों का वर्णन है ।
स्थानाङ्गग में दश अध्ययन हैं। दश अध्ययनों का एक श्रुतस्कन्ध है । द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ अध्ययन के चार-चार उद्देशक हैं। पंचम अध्ययन के तीन उद्देशक है। शेष छह अध्ययनों में एक-एक उद्देशक हैं। इस प्रकार इक्कीस उद्देशक हैं। समवायांग और नन्दीसूत्र के अनुसार स्थानाङ्ग की पदसंख्या बहत्तर हजार कही गयी है। आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित स्थानाङ्ग की सटीक प्रति में सात सौ ८३ (७८३) सूत्र हैं। यह निश्चित है कि वर्तमान में उपलब्ध स्थानाङ्ग में बहत्तर हजार पद नहीं है। वर्तमान में प्रस्तुत सूत्र का पाठ ३७७० श्लोक परिमाण है।
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स्थानाङ्गसूत्र ऐसा विशिष्ट आगम है जिसमें चारों ही अनुयोगों का समावेश है। मुनि श्री कन्हैयालालजी "कमल" ने लिखा है कि "स्थानाङ्ग में द्रव्यानुयोग की दृष्टि से ४२६ सूत्र चरणानुयोग की दृष्टि से २१४ सूत्र, गणितानुयोग की दृष्टि से १०९ सूत्र और धर्मकथानुयोग की दृष्टि से ५१ सूत्र हैं। कुल ८०० सूत्र हुए। जब कि मूल सूत्र ७८३ हैं । उन में कितने ही सूत्रों में एक-दूसरे अनुयोग से सम्बन्ध है। अतः अनुयोग वर्गीकरण की दृष्टि से सूत्रों की संख्या में अभिवृद्धि हुई है । "
क्या स्थानाङ्ग अर्वाचीन है?
स्थानाङ्ग में श्रमण भगवान् महावीर के पश्चात् दूसरी से छट्ठी शताब्दी तक की अनेक घटनाएं उल्लिखित है, जिससे विद्वानों को यह शंका हो गयी है कि प्रस्तुत आगम अर्वाचीन है । वे शंकाएं इस प्रकार हैं
१. नववें स्थान में गोदासगण, उत्तरबलिस्सहगण, उद्देहगण, चारणगण, उडुवातितगण, विस्सवातितगण,
1. समवायांग, सूत्र १३९, पृष्ठ १२३ – मुनि कन्हैयालालजी म. 2. नन्दीसूत्र ८७ पृष्ठ ३५ – पुण्यविजयजी म.
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