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________________ प्रस्तावना श्री स्थानाङ्ग सूत्र नागार्जुनीय वाचना को पाठान्तर के रूप में स्वीकारकर अपने उदात्त मानस का परिचय दिया, जिससे जैनशासन विभक्त होने से बच गया। उनके भव्य प्रयत्न के कारण ही श्रुतनिधि आज तक सुरक्षित रह सकी। ___आचार्य श्री देवर्द्धिगणि ने आगमों को पुस्तकारूढ़ किया। यह बात बहुत ही स्पष्ट है। किन्तु उन्होंने किनकिन आगमों को पुस्तकारूढ़ किया? इसका स्पष्ट उल्लेख कहीं भी नहीं मिलता। नन्दीसूत्र में श्रुतसाहित्य की लम्बी सूची है। किन्तु नन्दीसूत्र देवर्द्धिगणि की रचना नहीं है। उसके रचनाकार आचार्य देव वाचक हैं। यह बात नन्दीचूर्णी और टीका से स्पष्ट है। इस दृष्टि से नन्दी सूची में जो नाम आये हैं, वे सभी देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण के द्वारा लिपिबद्ध किये गये हों, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। पण्डित दलसुख मालवणिया का यह अभिमत है कि अंगसूत्रों को तो पुस्तकारूढ़ किया ही गया था और जितने अंगबाह्य ग्रन्थ, जो नन्दी से पूर्व हैं, वे पहले से ही पुस्तकारूढ़ होंगे। नन्दी की आगमसूची में ऐसे कुछ प्रकीर्णक ग्रन्थ हैं, जिनके रचयिता देवर्द्धिगणि के बाद के आचार्य हैं। सम्भव है उन ग्रन्थों को बाद में आगम की कोटि में रखा गया हो। कितने ही विज्ञों का यह अभिमत है कि वल्लभी में सारे आगमों को व्यवस्थित रूप दिया गया। भगवान् महावीर के पश्चात् एक सहस्र वर्ष में जितनी भी मुख्य-मुख्य घटनाएं घटित हुई, उन सभी प्रमुख घटनाओं का समावेश यत्र-तत्र आगमों में किया गया। जहाँ-जहाँ पर समान आलापकों का बार-बार पुनरावर्तन होता था, उन आलापकों को संरक्षितकर एक दूसरे का पूर्तिसंकेत एक दूसरे आगम में किया गया। जो वर्तमान में आगम उपलब्ध हैं, वे देवर्द्धिगणि की वाचना के हैं। उसके पश्चात् उसमें परिवर्तन और परिवर्धन नहीं हुआ। ___ यह सहज ही जिज्ञासा उबुद्ध हो सकती है कि आगम-संकलना यदि एक ही आचार्य की है तो अनेक स्थानों पर विसंवाद क्यों है? उत्तर में निवेदन है कि सम्भव है इसके दो कारण हों। जो श्रमण उस समय विद्यमान थे उन्हें जो-जो आगम कण्ठस्थ थे, उन्हीं का संकलन किया गया हो। संकलनकर्ता को देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ने एक ही बात दो भिन्न आगमों में भिन्न प्रकार से कही है, यह जानकर के भी उसमें हस्तक्षेप करना अपनी 'अनधिकार चेष्टा समझी हो। वे समझते थे कि सर्वज्ञ की वाणी में परिवर्तन करने से अनन्त संसार बढ़ सकता है। दूसरी बात यह भी हो सकती है-नौवीं शताब्दी में सम्पन्न हुई माथुरी और वल्लभी वाचना की परम्परा के जो श्रमण बचे थे, उन्हें जितना स्मृति में था, उतना ही देवर्द्धिगणि ने संकलन किया था, सम्भव है वे श्रमण बहुत सारे आलापक भूल ही गये हों, जिससे भी विसंवाद हुये हैं। ज्योतिषकरण्ड की वृत्ति में यह प्रतिपादित किया गया है कि इस समय जो अनुयोगद्वार सूत्र उपलब्ध है, वह माथुरी वाचना का है। ज्योतिषकरण्ड ग्रन्थ के लेखक आचार्य वल्लभी वाचना की परम्परा के थे। यही कारण है कि अनुयोगद्वार और ज्योतिषकरण्ड के संख्यास्थानों में अन्तर है। अनुयोगद्वार के शीर्षप्रहेलिका की संख्या एक सौ छानवे (१९६) अंकों की है और ज्योतिषकरण्ड में शीर्षप्रहेलिका की संख्या २५० अंकों की है। इस प्रकार हम देखते हैं कि आगमों को व्यवस्थित करने के लिए समय-समय पर प्रयास किया गया है। व्याख्याक्रम और विषयगत वर्गीकरण की दृष्टि से आर्य रक्षित ने.आगमों को चार भागों में विभक्त किया है१. चरणकरणानुयोग-कालिकश्रुत, २. धर्मकथानुयोग-ऋषिभाषित उत्तराध्ययन आदि, ३. गणितानुयोग-सूर्यप्रज्ञप्ति आदि। ४. द्रव्यानुयोग-दृष्टिवाद या सूत्रकृत आदि। प्रस्तुत वर्गीकरण विषय-सादृश्य की दृष्टि से है। व्याख्याक्रम की दृष्टि से आगमों के दो रूप हैं-१. अपृथक्त्वानुयोग, २.पृथक्त्वानुयोग। आर्य रक्षित से पहले अपृथक्त्वानुयोग 1. नन्दीसूत्र चूर्णि, पृ. १३ 2. जैनदर्शन का आदिकाल, पृ. ७ 3. दसवेआलियं, भूमिका, पृ. २७, आचार्य तुलसी 4. सामाचारीशतक, आगम स्थापनाधिकार-३८ 5. (क) सामाचारीशतक, आगम स्थापनाधिकार-३८ (ख) गच्छाचार, पत्र ३ से ४ xxiii
SR No.005768
Book TitleSthanang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages484
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_sthanang
File Size12 MB
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