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________________ * * 149, 1 त्यारे।। मृषा भने Hशयलिश भाग- 3ERE- मध्य. ७ डोष्टsAS सप्तम अध्ययन * सुवाक्य शुद्धि अनुयोग द्वार -४ उपक्रम निक्षेप अनुगमन नामनिष्पन्न निक्षेप 'वाका शुद्ध इति द्विपदं नाम वाक्य निक्षेप मॉम स्थापना व्याय तशीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त-- माकैण गृहीतानि उच्चार्यमाणानि शब्दत्वेन परिणतानि) [भाषण गृहीतान्यनुच्यार्पमाणानि भाषा शब्द । भाषा द्गव्य व्य-अंत चारित्र ग्रहण निसर्ग पराद्यात सत्य मृषा -- असल्यामृषा--- सत्य - मृषा मायादृष्यि सम्यग्दृष्टि ) माठामादिन पुनराळनधारिने परिणाम मिचारिणीने जुनना अनुपयोग करता तेने आमंत्रण वालाने सत्य भाराधना विराधना उभय अनमय मृषा मागा | उपयोगाची निष्काशन || आदि रुप होवाधीषा होया होय. (सत्यामृपा योनौलें। बोले त्यूऐ---असत्याममा छे. (साधु ने अनाचारत मनै अवी-मनःसत्य | मियादृष्टि पप-केवल शान आवानी भाषा तो मिपाचहीपन-मां उपयुक्त हुने मृषा जहापन जेषोले ते प्रत्यारभई सत्य(१०) मपा(e) -मिग (0)मत्ाँगुषा स्थापना. नाम प प्रतीत्य व्यवहार भाव योग औपाय कार्य बोध कराववान गोवालिया विहीरे ने घर, मुद्रा कुलनेन समर्थ विग्निन्न देशो सम्मत-जैमरे- चम्म विगैरे मा निधारतो गुणन मांगनीजेतो भाषा पाणी ने । कुमुद विगैरे उमता हौवा सौ हजार होचतो आत्राने पयः, पिच्वं, उदक,नीर- छता अरविंद नेज कोरे नी पण. पंकज महेवु. इस्व बाबी अलीमा ऐडको दे हास्य अर्थ आध्यापियो ऽपघात पिता पुनने को अन्म नोमो सपनीमहे गोलर्क | अन्यथा बदलना पर प्रेम होगामात्सर्य पीजोय होप गोल समयसीमानाकात भनौर। दिमाशे पुत्र नीरण धनवाले यौनिए योग में आम परमानने को तारो | | बोले Hari _ भरे' दास निर्गुणी |भायी परशा प अहसा य आने शामजी यजीवालोब अनंत का आजैदेर शजन्म्या जायता अनेचार मरेला मालामामूलकदादिमा अर्जतमाध] मर्या-मरेला कृषि-कृमिसारी मर्गमा परित-नाशवान दिवस पूरी अनीवशारी ते अदमा मोवाया। | पनादिने परित म्लान औषतामा जीवराशि को पण मनता पथैला मूल- होयत्यारे उतावल करती हर || 'नाई मानवधी टोपना द आमन्त्रणी आतापनी याचनी प्रच्छनी मजापनी प्रत्यास्थानी इच्छानुलामा अननिहीता अधिगधता संशयकरणी व्यकृता अव्याला देवटना आकप्रिक्षामा करिसी मां | V देवदत्ता' 'आकर' भिक्षा माकड मा मानही कोइके कोने का अर्थ म सजाय अर्थहण अनेक प्रर्य पर प्रापारमान I RAL नारीत प्रवृत्तने बान्दो जमादेवर छ, त्यो कहे 'आसारा जेमके 'डित्य SINGER सत्य अन मधा भाषा पर्याप्त छे, कैमके पौत्म्पौलाना व्याने भावना छ, (पर्याप्त में प्रेक, पक्ष मां मुकाय ते पर्याप्त मापा) ज्यारे सत्याममा भने असापामृषा अपर्यातको पोलमोलाना व्यवहार ने आधनारी नथी. जनपद सम्मत मायुना की जोव नि समुद्र योगी जैगे तनाव 'दछ 'छत्री माया लक्षाही मानन कलपन बीजी सांगली दीर्घ साहनी शुक्ला स्थापना मनदरताना -मनुदर क 44491 E - - पिना गीत.. FFFFF * * * जायलकरना | दिवस-रातीनीय रावा माथ्या कडे करे । 4 - 44 य आप नयी साधु पास ना तेवा सदी मरावतार वाला लाव नो 'बालको मीन
SR No.005765
Book TitleDashvaikalik Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunhansvijay, Bhavyasundarvijay
PublisherKamal Prakashan Trust
Publication Year2009
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_dashvaikalik
File Size7 MB
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