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HEREशयलिइसू भाग-१ eARE- અધ્ય. ૧ કોઠક
अभयतर तप (प्रकारे) प्रायास वैयावच्च सज्झाय
ध्यान
काउस्सग्ग आलोचना सानु ८६ दर्शन ८२५) चारित्र () मन धरन बीमा औपचाविक | प्रतिक्रमण| पाच प्रकारना अाप मनाशीतना-५) १ मामाधिक आचार्य नौ ३. मित्र
. तानमा
अभ्यासस्थान १. सत्कार तीर्थकर मोटोपश्चापनिय विनय विवैम
अनुबालमनादि ३. भम्ती ३. अभ्युधान धर्म परिहार विश
(इम मनुरुपत) ३.कायोत्सर्ग सनान ३. आचार्य
2. कृतप्पनिकृति ३. बहुमान ५.अभिम ४-वाचक
भकारिनानिमिचरण
नी उदीरणा ५.स्थवीर
आमनन) ६. तप
१.दराचोनीसम्बामावना अनुप्रदान ६ कुल श नीमा
५.यचाध्यात ७. छेद !
७.गण
प्रासजन) प्रविधिमण ८.संघ
६ देशकालनीता 6. मूल ६. अभ्यास .अंजलिग्रह क्रिया
७सीर्ष मा जनप्रति नम्ति याद) ९. मनवस्याप्य
5. पर्युपासना त .. १०. पाराांचित
सन १३ अबधि।
पसूक्ष्म संपराप कुशल मनादि
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पदावार्तगत
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६.कृतिक
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सांझौगिक
८. अनुगमन समिति सन
१०.अन व्रजन
(जता)
नाच १५. देवल ..
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म.
प्रवचनधी विशेषी
चतुझंगी
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: वैयावच्च-१००
१०. माचार्य) उपाध्याच स्थवीर) तपस्वी उलान रोक्षक साधर्मिक कुल गण संघ १. प्रव्राजनाचार्य १.जन्मबी *दिशाचार्य
२ तधी 7 सूत्रना उद्देशाचार्य 3. पर्यायची ४. .. .. समुद्देशाचार्य ५. वाचनाचार्य
स्वाध्याय ... वाचंना पृच्छेना परावर्तन अनपेक्षा धर्मकथा शिष्य मे सूत्र अथवा अब बिना मन ची परीवर्तनको धमनी अनुयोग [भणावमुनी पृछा होप करवं. वचन भी नहीं करवी
: ध्यान (2) आर्तध्यान रौद्रध्यान
धर्मध्यान
शुक्ल ध्यान झातिमाना मा इच्छामिलाषा अनुकंपा न सूच
सूत्रार्थ साधन,महाजन अनी बन्यो विवयोमा ] शज्य-उपभोग-शयन - आसन | आतिराग करे
धारण, बंध-सक्ष शमन- पयंगमुख हो, समय| छेदन-दहन-भजन-मारण
कून्यूज-विकम-विकार वाहन-स्त्री-गन्धमाल्य-मणिरजाति
| आगमन चिंता, पंचन्द्रिय वध-प्रहार-दमने-टिनिकृन्तन दाणादुडपकार, जीयो पा वया
वीरोधी मने प्रण यौमी
थी गुप्त अंतरात्मावाली पाल-तिर्यचगति
फल-अधोगति फल-देवगति 'फल-जन्मक्षय कायोत्सर्ग)
भाव गण है उपौध मत
शोधादि नी त्याग.
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