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દશવૈકાલિકસૂત્ર ભાગ-૧
प्रश्न: आ छः अभ्यंतर तप शा मारे कहेवाय ? उत्तर १० लौकिक माणसो ओळखी नाही शकता | 2. तंत्रान्तरयो भाव ही सेवी नयी शक्ता । 2. मोक्ष नुं अंतरंगकारण हो तेथी......
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जिनवचन
परुधिय
हेतु मात्रोपन्यास थी सम जाते
चरित (४)
उदाहरण_(8)
स वध
हत्यामा
मारणे मारवानी पछी
बुद्धिचैराग्य
आज्ञासिद्ध युक्तिसिद्ध
तदेश
हेतु विगेरेना उपन्यास श्री समजावे द्रष्टांत थी समजा
अपाय
उपोय
द्रव्याची क्षेत्रथी कालेची
आवची द्रव्य
वे भाई दशारवर्ग दैपायन मंडलिक- लौकिक लोकोत्तर लौ. बच्चे ऋषि
उअधि (श्रोताने आजीने)
* चरण-करणानुयोग ने आजीने अपाय उपाय
:- द्रण-कारणे गृहीत वस्त्र पात्र कनकादि द्रव्य जो पण त्याग करें।
क्षेत्र- आशिवादि कारणे क्षेत्र जो सांग करे।
३. काम- भविष्यमा १२ वर्ष आपनारा अपायो ने जाणीने
४. भाब- क्रोधादि अप्रशस्त मागें तो त्याग करे।
* द्रव्यानुयोग ने आजीने अपाय
- वास्तविक सुख-दुःख आत्मा मा. नथी। होतो पण कल्पित होय छे. श्रेतुंमाननाराओं ने पथा स्वभाव भेद मानवो पडरी अने तेम स्वद्याय भेद मानया जतो- आत्मा अनित्य बनशे सुखदुःख मी कल्पना निरर्थक बनरी:/
तद्दोष
અધ્ય. ૧ કોષ્ઠક
साध्यसाधनान्वयव्यतिरेक प्रदर्शनम्
उदाहरणम्
साधा धर्मान्वयव्यतिरेक लक्षणम्
" हेतु
तेमां द्रष्टांत = उदाहरण प्रकारे
कल्पित (४)
मध्यमधिय
पंचावरण वाक्य थी समजावे
साधना
का
आव
लो. लौ.
बोलौं लो
विधिपूर्वक नालिका सूत्र अशधकु- द्रव्यासवारे (घडी)
सुवर्णपान
मुनि
१२ वर्ष काक्षपक द्रव्य मारे मार्ग मां ! लांगल - पछी प्राशुकोदक (हल् ) कुरगडु परावर्त मारे योग द्वारका करवा काटे, यो क्षेत्र र भ्रमण यी द्वारा का वाली आमा सुव अशनादि हम नादि बृह्णकुमारी नाश.. तपी खरडायला खेडलुं द्वारा क्षेत्र काल काल द्वारा चौर ना पूल्ला विजय ते..- ना भाव ने जो उपयोग से रूपी मातं अस्तित्व निजाणवा जाणवु जाण- ग ने ते... पकडयोः सिद्धि
कानो
: ३: स्थापना उदाहरण चरणकरणामुयोग ने आभीने
द्रव्यादि चतुष्क सहित नित्य आत्मा
लौकिक
लोकोत्तर
माननाशओ ने सुख-दुःख रूप संसार
"अभाव कवी ? अनार [पाटलीपुत्र मां हिंगु शीव.] प्रवचन नी
बाने हिंगुशीव नी जैम उपाय करे. ।
दशावत वाक्य थी समजारी
४ उपन्यास
प्रत्युवाविगत
अनुयोगले आमीने
ज्यारे वाद मां जेनोज पक्ष स्थापीने
दोष बतावीने से होते स्थाय के जे ग्राह्य बने.
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