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________________ tr བ त H, 201 जि न शा स ना य દશવૈકાલિકસૂત્ર ભાગ-૧ प्रश्न: आ छः अभ्यंतर तप शा मारे कहेवाय ? उत्तर १० लौकिक माणसो ओळखी नाही शकता | 2. तंत्रान्तरयो भाव ही सेवी नयी शक्ता । 2. मोक्ष नुं अंतरंगकारण हो तेथी...... 1 जिनवचन परुधिय हेतु मात्रोपन्यास थी सम जाते चरित (४) उदाहरण_(8) स वध हत्यामा मारणे मारवानी पछी बुद्धिचैराग्य आज्ञासिद्ध युक्तिसिद्ध तदेश हेतु विगेरेना उपन्यास श्री समजावे द्रष्टांत थी समजा अपाय उपोय द्रव्याची क्षेत्रथी कालेची आवची द्रव्य वे भाई दशारवर्ग दैपायन मंडलिक- लौकिक लोकोत्तर लौ. बच्चे ऋषि उअधि (श्रोताने आजीने) * चरण-करणानुयोग ने आजीने अपाय उपाय :- द्रण-कारणे गृहीत वस्त्र पात्र कनकादि द्रव्य जो पण त्याग करें। क्षेत्र- आशिवादि कारणे क्षेत्र जो सांग करे। ३. काम- भविष्यमा १२ वर्ष आपनारा अपायो ने जाणीने ४. भाब- क्रोधादि अप्रशस्त मागें तो त्याग करे। * द्रव्यानुयोग ने आजीने अपाय - वास्तविक सुख-दुःख आत्मा मा. नथी। होतो पण कल्पित होय छे. श्रेतुंमाननाराओं ने पथा स्वभाव भेद मानवो पडरी अने तेम स्वद्याय भेद मानया जतो- आत्मा अनित्य बनशे सुखदुःख मी कल्पना निरर्थक बनरी:/ तद्दोष અધ્ય. ૧ કોષ્ઠક साध्यसाधनान्वयव्यतिरेक प्रदर्शनम् उदाहरणम्‌ साधा धर्मान्वयव्यतिरेक लक्षणम् " हेतु तेमां द्रष्टांत = उदाहरण प्रकारे कल्पित (४) मध्यमधिय पंचावरण वाक्य थी समजावे साधना का आव लो. लौ. बोलौं लो विधिपूर्वक नालिका सूत्र अशधकु- द्रव्यासवारे (घडी) सुवर्णपान मुनि १२ वर्ष काक्षपक द्रव्य मारे मार्ग मां ! लांगल - पछी प्राशुकोदक (हल् ) कुरगडु परावर्त मारे योग द्वारका करवा काटे, यो क्षेत्र र भ्रमण यी द्वारा का वाली आमा सुव अशनादि हम नादि बृह्णकुमारी नाश.. तपी खरडायला खेडलुं द्वारा क्षेत्र काल काल द्वारा चौर ना पूल्ला विजय ते..- ना भाव ने जो उपयोग से रूपी मातं अस्तित्व निजाणवा जाणवु जाण- ग ने ते... पकडयोः सिद्धि कानो : ३: स्थापना उदाहरण चरणकरणामुयोग ने आभीने द्रव्यादि चतुष्क सहित नित्य आत्मा लौकिक लोकोत्तर माननाशओ ने सुख-दुःख रूप संसार "अभाव कवी ? अनार [पाटलीपुत्र मां हिंगु शीव.] प्रवचन नी बाने हिंगुशीव नी जैम उपाय करे. । दशावत वाक्य थी समजारी ४ उपन्यास प्रत्युवाविगत अनुयोगले आमीने ज्यारे वाद मां जेनोज पक्ष स्थापीने दोष बतावीने से होते स्थाय के जे ग्राह्य बने. * * मो S स्तु त H जि न शा 5 ना य ***
SR No.005763
Book TitleDashvaikalik Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunhansvijay, Bhavyasundarvijay
PublisherKamal Prakashan Trust
Publication Year2009
Total Pages366
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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