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________________ श्री प्रज्ञापना सूत्र भाग १ प्रश्नव्याकरण' के अधर्मद्वार में भी कुछ परिवर्तन के साथ अनार्यों के नाम प्राप्त होते हैं। वहाँ यवन के बाद चिलाय नहीं है, भटक के पश्चात् णिण्णग नह है, पर तित्तीय है । तुलनात्मक दृष्टि से संक्षेप में अन्तर इस प्रकार है प्रज्ञापना ३ चिलाय ८ ओड '० १० निण्णग १३ गोंड १६ गोध 4 १८ अम्बड २० चिल्लल प्रश्नव्याकरण ३८ मग्गर ४५ णद्दर ४६ मोंढ़ ४८ ओ o ७ उद ९ तित्तिय ० १२ गौड १६ अन्ध आन्ध्र १८ बिल्लल २२ हारोस २० अरोस बहुत से नामों में भिन्नता है, ये भिन्न शब्द इस प्रकार है प्रज्ञापना प्रश्नव्याकरण ० ३६ महुर ४३ हर प्रज्ञापना २३ दोब २४ वोक्कण २५ पहलिय २७ अज्झल २९ पास ३० पउस ३२ बन्धुय ३३ सूर्यालि ३६ पल्हव प्रज्ञापना ४९ पओ ५१ कक्कय ५२ अक्खाग ५४ भरु ४४ मरहठ ४५ मुठिय प्रवचनसारोद्धार' में अनार्य देशों के नाम इस प्रकार हैं प्रश्नव्याकरण २१. डोंब २२ पोक्कण २४ वहलिय २५ जल्ल २७ मास २८ बउस ३० चंचुय ३१ चुलिया ३४ पण्हव प्रश्नव्याकरण ४६ आरभ ४९ केकभ ४८ कुट्टण ५२ रुस १. शक, २. यवन, ३. शबर, ४. बर्बर, ५. काय, ६. मरुण्ड, ७. अड्ड, ८. गोपा (गौड्ड), ९. पक्कणग, १०. अरबाग, ११. हूण, १२. रोमक, १३. पारस, १४. खस, १५. खासिक, १६. दुम्बिलक, १७. लकुश, १८. बोक्कस, १९. भिल्ल, २०. आन्ध्र (अन्ध्र ), २१. पुलिन्द, २२. क्रोंच, २३. भ्रमररुच, २४. कोर्पक, २५. चीन, २६. चंचुक, २७. मालव, २८. द्रविड, २९. कुलार्घ, ३०. केकय, ३१. किरात, ३२. हयमुख, ३३. खरमुख, ३४. गजमुख, ३५. तुरंगमुख, ३६. मिण्ढकमुख, ३७. हयकर्ण, ३८. गजकर्ण । महाभारत के उपायन-पर्व में भी कुछ नाम इसी तरह से प्राप्त होते हैं, जो निम्नानुसार हैं १. म्लेच्छ, २. यवन, ३. बर्बर, ४. आन्ध्र, ५. शक, ६. पुलिन्द, ७, औरुणिक, ८. कम्बोज, ९. आमीर, १०. पल्हव, ११. दरद, १२. कंक, १३. खस, १४. केकय, १५. त्रिगर्त, १६. शिबि, १७. भद्र, १८. हंस कायन, १९. अम्बष्ठ, २०. तार्क्ष्य, २१. प्रहव, २२. वसाति, २३. मौलिय, २४. क्षुद्रमालवक, २५. शौण्डिक, २६. पुण्ड्र, २७. शाणवत्य, २८. कायव्य, २९. दार्व, ३०. शूर, ३१. वैयमक, ३२. उदुम्बर, ३३. वाल्हीक, ३४. कुदमान, ३५. पौरक आदि । इस प्रकार मानव जाति एक होकर भी उसके विभिन्न भेद हो गये हैं। पशु में जिस प्रकार जातिगत भेद हैं, वैसे ही मनुष्य में जातिगत भेद नहीं हैं। मानव सर्वाधिक शक्तिसंपन्न और बौधिक प्राणी है। वह संख्या की दृष्टि से अनेक १. प्रश्नव्याकरण, अधर्मद्वार, सूत्र ४; २. प्रवचनसारोद्धार, गाथा १५८३ - १५८५ 38
SR No.005761
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages554
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_pragyapana
File Size15 MB
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