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________________ श्री प्रज्ञापना सूत्र भाग १ कितने ही चिन्तकों का यह मानना है कि प्रज्ञापना और जीवाजीवाभिगम में क्षेत्र आदि की दृष्टि से जो आर्य और अनार्य का भेद प्रतिपादित है वह विभाजन आर्य और अनार्य जातियों के घूल-मिल जाने के पश्चात् का है। इसमें वर्ण और शरीरसंस्थान के आधार पर यह विभाग नहीं हुआ है।' सूत्रकृतांग में वर्ण और शरीर के संस्थान की दृष्टि से विभाग किया है। वहाँ पर कहा गया है- पूर्व पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, इन चारों दिशाओं में मनुष्य होते हैं। उनमें कितने ही आर्य होते हैं, तो कितने ही अनार्य होते हैं। कितने ही उच्च गोत्र वाले होते हैं तो कितने ही नीच गोत्र वाले; कितने ही लम्बे होते हैं तो कितने ही नाटे होते हैं; कितने ही श्रेष्ठ वर्ण वाले होते हैं तो कितने ही अपकृष्ट वर्ण वाले अर्थात् काले होते हैं, कितने ही सुरूप होते हैं, कितने ही कुरूप होते हैं। ऋग्वेद में भी आर्य और आर्येतर ये दो विभाग मिलते हैं। अनार्य जातियों में भी अनेक संपन्न जातियां थीं; उनकी अपनी भाषा अपनी सभ्यता थी, अपनी संस्कृति थी, अपनी संपदा और अपनी धार्मिक मान्यताएँ थीं। प्रज्ञापना में कर्मभूमिज मनुष्यों के ही आर्य और म्लेच्छ ये दो भेद किए हैं। ' तत्त्वार्थभाष्य' और तत्त्वार्थवार्तिक में अन्तद्वपज मनुष्यों के भी दो भेद किए हैं। म्लेच्छों की भी अनेक परिभाषाएँ बतायी गयी हैं। प्रवचनसारोद्धार की दृष्टि से जो हेयधर्मों से दूर हैं और उपादेय धर्मों के निकट हैं वे आर्य हैं।" जो हेयधर्म को ग्रहण किये हुए हैं वे अनार्य हैं। आचार्य श्री मलयगिरिजी ने प्रज्ञापनावृत्ति में लिखा है कि जिनका व्यवहार शिष्टसम्मत नहीं है वे म्लेच्छ हैं।" प्रवचनसारोद्धार में लिखा है - जो पापी है, प्रचंड कर्म करनेवाले हैं, पाप के प्रति जिनके अन्तर्मानस में घृणा नहीं है, अकृत्य कार्यों के प्रति जिनके मन में पश्चात्ताप नहीं है। 'धर्म' यह शब्द जिनको स्वप्न में भी स्मरण नहीं आता, वे अनार्य हैं।' प्रश्नव्याकरण में कहा गया है - विविध प्रकार के हिंसाकर्म म्लेच्छ मानव करते हैं।" आर्य और म्लेच्छों की जो ये परिभाषाएँ हैं ये जातिपरक और क्षेत्रपरक न होकर गुण की दृष्टि से हैं। कौटिल्य अर्थशास्त्र में आर्य शब्द स्वतन्त्र नागरिक और दास परतंत्र नागरिक के अर्थ में व्यवहृत हुआ।" प्रज्ञापना में कर्मभूमि मनुष्य का एक विभाग अनार्य यानी म्लेच्छ कहा गया है। अनार्य देशों में समुत्पन्न लोग अनार्य कहलाते हैं। प्रज्ञापना में अनार्य देशों के नाम इस प्रकार हैं १. शक (पश्चिम भारत का देश ), २. यवन - यूनान, ३. चिलात (किरात), ४. शबर, ५. बर्बर, ६. काय, ७. मरुण्ड, ८. ओड, ९. भटक (भद्रक) (दिल्ली और मथुरा के बीच यमुना के पश्चिम में स्थित प्रदेश), १०. णिण्णग (निम्नग), ११. पक्कणिय ( मध्य एशिया का एक प्रदेश प्रकण्व या परगना ), १२. कुलक्ष, १३. गोंड, १४. सिंहल (लंका), १५. पारस (ईरान), १६. गोध, १७. क्रोंच, १८. अम्बष्ठ (चिनाव नदी के निचले भाग में स्थित एक गण राज्य), १९. दमिल ( द्रविड), २०, चिल्लल, २१. पुलिन्द, २२. हारोस, २३. दोब, २४. वोक्कण (अफगानिस्तान का उत्तरी-पूर्वी छोटा प्रदेश-वखान), २५. गन्धहारग ( कन्धार), २६. पहलिय, २७. अज्झल, २८. रोम, २९. पास, ३०. पउस, ३१. मलय, ३२. बन्धुय (बन्धुक), ३३. सूयलि, ३४. कोंकणग, ३५. मेय, ३६. पल्हव, ३७. मालव, ३८. मग्गर, ३९. आभाषिक, ४०. अणक्क, ४१. चीणं (चीन), ४२. ल्हसिय ( ल्हासा), ४३. खस, ४४. खासिय, ४५. णद्वर (नेहर), ४६. मोंढ़, ४७. डोंबिलग, ४८. लओस, ४९. कक्केय, ५०. पओस, ५१. अक्खाग, ५२. हूण, ५३. रोभक, ५४. मरु, ५५. मरुक । १. अतीत का अनावरण, भारतीय विद्यापीठ, पृ. १५५; २. सूत्रकृतांग २११; ३. ऋग्वेद ७।६।३, १११७६ ३-४, ८ ७० | ११ ४. प्रज्ञापना १, सूत्र ९८; ५. तत्त्वार्थभाष्य ३।१५; ६. तत्त्वार्थवार्तिक ३।३६ ७. प्रवचनसारोद्धार पृष्ठ ४१५; ८. प्रज्ञापना १ वृत्ति; ९. पावा य चंडकम्मा, अणारिया निग्धिणा निरणुतावी । धम्मोत्ति अक्खराई, सुमिणे वि न नज्जए जाणं ।। – प्रवचनसारोद्धार गाथा १५९६ १०. प्रश्नव्याकरण, आश्रव द्वार १; ११. मूल्येन चायत्वं गच्छेत् । - कौटिल्य अर्थशास्त्र ३।१३।२२ 37
SR No.005761
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages554
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_pragyapana
File Size15 MB
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