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* खावश्यडनियुक्ति • हरिभद्रीयवृत्ति • सभाषांतर (भाग-७)
धम्मं सुकं दुवे झाय झाणाइँ जो ठिओ संतो । एसो काउस्सग्गो उसउसिओ होइ नायव्वो ॥१४८१ ॥ धम्मं सुक्कं च दुवे नवि झायइ नवि य अट्टरुद्दाई । सो काउसो दव्वुसिओ होइ नायव्वो ॥१४८२॥ पयलायंत सुसुत्तो नेव सुहं झाइ झाणमसुहं वा । अव्वावारियचित्तो जागरमाणोवि एमेव ॥ १४८३॥ अचिरोववन्नगाणं मुच्छियअव्वत्तमत्तसुत्ताणं । ओहाडियमव्वत्तं च होइ पाएण चित्तंति ॥ १४८४॥ गाढालंबणलग्गं चित्तं वृत्तं निरेयणं झाणं । सेसं न होइ झाणं मउअमवत्तं भमंतं वा ॥ १४८५ ॥ उम्हासेसोवि सिही होउं लधिणो पुणो जलइ । इय अवत्तं चित्तं होउं वत्तं पुणो होइ ॥ १४८६॥ पुव्वं च जं तदुत्तं चित्तस्सेगग्गया हवइ झाणं । आवन्नमणेगग्गं चित्तं चिय तं न तं झाणं ॥ १४८७ ॥ मणसहिएण उ काएण कुणइ वायाइ भासई जं च । एयं च भावकरणं मणरहियं दव्वकरंणं च ॥१४८८॥ जड़ ते चित्तं झाणं एवं झाणमवि चित्तमावन्नं । तेन र चित्तं झाणं अह नेवं झाणमन्नं ते ॥१४८९ ॥ नियमा चित्तं झाणं झाणं चित्तं न यावि भइयव्वं । जह खइरो होइ दुमदुमो य खइरो अखयरो वा ॥१४९० ॥ अट्टं रुद्दं च दुवे झाय झाणाई जो ठिओ संतों । एसो काउस्सग्गो दव्वुसिओ भावउ निसन्नो ॥१४९१॥ धम्मं सुक्कं च दुवे झाय झाणाइं जो निसन्नो अ । एसो काउस्सग्गो निसनुसिओ होइ नायव्वो ॥१४९२॥ धम्मं सुक्कं च दुवे नवि झायइ नवि य अट्टरुद्दाई | एसो काउस्सग्गो निसण्णओ होइ नायव्वो ॥१४९३॥ अट्टं रुद्दं च दुवे झाय झाणाइ जो निसन्नो य । एसो काउस्सग्गो निसन्नगनिसन्नाओ नामं ॥१४९४॥ धम्मं सुक्कं च दुवे झाय झाणाइ जो निवन्नो उ । एसो काउस्सग्गो निवनुसिओ होइ णायव्वो ॥१४९५॥
गाथार्थ : टीडार्थ प्रभाशे भावो.