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________________ ( १२८ ) यशोविजयजी विगेरे थई गया छे, तेमना करेला ग्रंथो परथी जणाय छे के - आत्मानुं कल्याण करवा माटे पूर्वकाळमां मुनिओ योगाभ्यासनी क्रिया बहु सारी रीते करता हता, परंतु वर्तमानकाळमां ते संबंधी बहु मंदता नजरे चढे छे, तेना कारणोनो विचार करतां प्रथम कारण तो अनेक हेतुथी शरीरनी शक्ति घटी गइ छे ते छे, बीजं कारण धर्मश्रद्धा पण घटी गइ छे ते छे अने त्रीजुं कारण साधुओ पुस्तकादि एकत्र करवामां अने पोतानुं मानमहत्त्व वधारवामां ज साधुपशुं समजवा लाग्या छे ते पण छे. चोथुं कारण शिष्यादिकना लोभे पण पोतानो पंजो तेमना तरफ लंबाव्यो छे ते छे. आ प्रमाणे थवाथी स्वरोदयज्ञाननो अभ्यास करवानुं शी रीते बनी शके ? तेना पर प्रेम केम आवे १ केमके आ कार्य तो निर्लोभी अने आत्मज्ञानीनुं छे. मुनिना आत्मकल्याणनो मुख्य मार्ग आ छे, एटले के योगनी साधना अने ध्यानना अभ्यासवडे ज साचुं आत्मकल्याण थई शके छे. आम कहेवामां जरा पण अतिशयोक्ति नथी. < वळी एक बात ए पण जाणवा जेवी छे के- केटलाक साधुओ आत्मकल्याणनो मार्ग छोडीने अज्ञानी
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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