________________
( १३० )
संसारी मनुष्यो उपर पोताना ढोंग अने दंभंद्वारा साधुपणानी छाप बेसाडवानो यत्न करे छे.
प्राणायाम योगनी दश भूमिका छे. तेमां प्रथम भूमिका स्वरोदयज्ञाननी छे. आ ज्ञानना अभ्यासद्वारा मोटा मोटा गुप्त भेदोने पण मनुष्य सुगमतापूर्वक जाणी शके छे अने घणा व्याधिओनुं निवारण पण करी शके छे. स्वरोदय शब्दनो अर्थ श्वासनुं काढवुं एवो थाय छे, तेथी आनी अंदर प्रथम मात्र श्वासनी ज ओळखाण कराववामां आवेल छे. नाक पर हाथने राखतां ज नाडीनुं ज्ञान थवाथी तेनो अभ्यासी गुप्त वातोनुं रहस्य चित्रनी माफक जाणी शके छे. एना ज्ञानथी अनेक प्रकारनी सिद्धि प्राप्त थाय छे, परंतु ए वात नक्की छे के आ ज्ञाननो अभ्यास गृहस्थथी सारी
ते यह शकतो नथी; केमके प्रथम तो आ विषय ज घणो कठीन छे, वळी एमां अनेक साधनोनी आवश्य कता छे, तेमज आ विषयना जे ग्रन्थो छे तेमां आ कठिन विषयनुं बहु संक्षेपथी वर्णन करेलुं छे, तेथी साधारण मनुष्योथी ए विषय समजी शकात नथी. वळी आ विद्याना सारी रीते जाणवावाळा अने अन्यने सारी रीते अभ्यास करावी शके तेवा योगीपुरुषो
·