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________________ (१२५) वामभाग है इंगला, पिंगला दक्षण धार । नासा पुटमें संचरत, सुखमन मध्य निहार ॥४३८॥ वामचक्षु गंधारिका, दक्षिण नयन मझार । हस्त जीह पुष्या सुधी, दक्षण कान प्रचार ॥४३९॥ वामे कान यशस्विनी, अलंबुषा मुखथान । कहुं लिंग अस्थान है, गुदा संखणी जाण ॥४४०॥ दिग धमणी ये कायमें, प्राणाश्रित नित जाण । वायु आश्रित जे रही, ते दश कहुं वखाण ॥४४१॥ प्राणापान समान जे, उदान अपान विचार । ये प्रधान वायु धमण, पंच अनुक्रम धार ॥४४२॥ नाग कूर्म अरु किरकरा, देवदत्त कहेवाय । नाडी धनंजय पांचमी, गवणि दीन बतलाय ॥४४३॥ दिया गुदा नाभी गला, तन संधि चित्त धार । प्राणादिकनी इण परे, अनुक्रम वास विचार ॥४४४॥ नागवायु परकाशथी, प्रगट होय उद्गार । कूर्मवायु नाडी उदे, उन्मिलन चित्त धार ॥ ४४५॥ छींक किरकराथी हुवे, देवदत्त परकाश । जंभाए आवे सुथिर, जाण धनंजय वास ॥ ४४६ ।। - १८
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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