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________________ ( १२६ ) इत्यादिक नाडीतणो, कह्यो अल्प विस्तार | अधिक हीयामें धारजो, गुरुगम तास विचार || ४४७ || जब स्वर बाहिरकुं चले, तब कोई पूछे आय । कोटी यतनथी तेहनो, कारज सिद्ध न थाय || ४४८ ॥ स्वर भीतरको चालतां, आवी पूछे कोय । कोटि भांति करी तेहनां, कारज सिद्ध न थाय ॥ ४४९॥ पंच तत्र जो ये कहे, ते तो संज्ञारूप । इन उपर जे मन ग्रह्मो, ते तो मिथ्या कूप ॥ ४५० ॥ आमनाय ये हे सुधी, स्वर विचारका काज | सम्यग् गथी जो ग्रहे, सो लहे सुख समाज ॥ ४५१ ॥ को एह संक्षेपथी, ग्रंथ स्वरोदय सार । भणे गुणे ते जीवकुं, चिदानंद सुखकार ॥ ४५२ ॥ कृष्णासाडी दसमी दिन, शुक्रवार सुखकार । निधि इंदु सर पूरणता (१९०५), चिदानंद चित्त धार ॥ ॥ पाठांतर || संवत्सर मुनि पूर्णता, नंद चंद चित्तधार ॥। १९०७ ||४५३॥ 00000 ********* इति श्रीकर्पूरचंदजी महाराजकृत स्वरोदयज्ञान संपूर्णम् S...................................................................................................................................................18
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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