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इत्यादिक नाडीतणो, कह्यो अल्प विस्तार | अधिक हीयामें धारजो, गुरुगम तास विचार || ४४७ || जब स्वर बाहिरकुं चले, तब कोई पूछे आय । कोटी यतनथी तेहनो, कारज सिद्ध न थाय || ४४८ ॥ स्वर भीतरको चालतां, आवी पूछे कोय । कोटि भांति करी तेहनां, कारज सिद्ध न थाय ॥ ४४९॥ पंच तत्र जो ये कहे, ते तो संज्ञारूप । इन उपर जे मन ग्रह्मो, ते तो मिथ्या कूप ॥ ४५० ॥ आमनाय ये हे सुधी, स्वर विचारका काज | सम्यग् गथी जो ग्रहे, सो लहे सुख समाज ॥ ४५१ ॥ को एह संक्षेपथी, ग्रंथ स्वरोदय सार । भणे गुणे ते जीवकुं, चिदानंद सुखकार ॥ ४५२ ॥ कृष्णासाडी दसमी दिन, शुक्रवार सुखकार । निधि इंदु सर पूरणता (१९०५), चिदानंद चित्त धार ॥ ॥ पाठांतर ||
संवत्सर मुनि पूर्णता, नंद चंद चित्तधार ॥। १९०७ ||४५३॥
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इति श्रीकर्पूरचंदजी महाराजकृत
स्वरोदयज्ञान संपूर्णम्
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