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नाभी स्वास समायके, ऊर्द्ध रेचसि होय । अजप जाप तिहां होत है, विरला जाणे कोय ॥४२८॥ हंकारे स्वर उठत है, थइ संकार समाय ॥ अजप जाप तिहां होत है, दीनो भेद बताय ॥४२९ ॥ जोगार्णवथी जाणजो, अधिक भाव चित्त लाय । थाय ग्रंथ गोरख घणो, तामें कह्या न जाय ॥ ४३०॥ देही मध्य नाडीतणो, बहु रूप विस्तार । पिंड स्वरूप निहारवा, जाणो तास विचार ॥ ४३१ ॥ वटशाखा जिम विस्तरी नाभी कंदथी जेह । भेद हुताशन जाणजो, पान निसा तिम तेह || ४३२ ॥ अह भुजंगाकारतें, वलइ अढाइ तास । जाण कुंडली नाडीतें, नाभीमांहे निवास ॥ ४३३॥ ऊर्ध्वगामिनी तेहथी, नाडी दश तनमांहि । अधोगामिनी दश सुगुण, लघु गणित कछु नांहि ॥ ४३४ ॥ दो दो तिरछी सहु मली, चतुर्विंशति जाण । दश वायु परवाहिका, दश प्रधान मन आण || ४३५॥ इंगला पिंगला सुखमना, गांधारी कहेवाय । हस्त जीह पंचम सुधी, पुष्पा देह बताय ॥ ४३६॥ सप्तम जाण यशस्विनी, अलंबुषा चित्त धार । कहुं संखणी नारीए, दशके नाम विचार ||४३७||