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________________ (११४) तिथि वार नक्षत्र फुनि, करण योग दिगशूल। लक्षणपात होरा लीए, दग्धतिथि अरु मूल ॥३३७॥ वृष्टिकाळ कुलिका लगन, व्यतिपात स्वर भान । शुक्र अस्त अरु चोगणी, यमघंटादिक जाण ॥३३८॥ इत्यादिक अपयोगको, यामे नहीं विचार । ऐसो ए स्वरज्ञान नित, गुरुगमथी चित्त धार ॥३३९॥ विगत उदक सर हंस विण, काया तरु विन पात। देव रहित देवल यथा, चंद्र विना जिम रात ॥३४०॥ शोभित नवि तप विण मुनि, जिम तप सुमता टार । तिम स्वरज्ञान विना गणक, शोभत नहिय लगार॥३४१॥ साधन बिन स्वरज्ञानको, लहे न पूरण भेद । चिदानंद गुरुगम विना, साधनहु तस खेद ॥३४२॥ दक्षण स्वर भोजन करे, डाबे पीये नीर । डाबे कर खट सूवतां, होय निरोग शरीर ॥ ३४३ ॥ चलत चंद भोजन करत, अथवा नारी भोग । जल पीवे सूरज विषे, तो तन नावे रोग ॥ ३४४ ॥ होय अपच भोजन करत, भोग करतं बलहीण। जल पीवत विपरीत इम, नेत्रादिक बल क्षीण॥३४५॥
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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