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________________ ( ११५ ) पांच सात दिन इणी परे, चले रीत विपरीत | होय पीड तनमें कछु, जाणो घरी परतीत ।। ३४६ ॥ बहिरभूमि इंगला चलत, पिंगला में लघुनीत । शयन दिसा सूरज विषे, करीए निसदिन मित ॥ ३४७॥ दिवस चंदस्वर संचरे, निशा चलावे सूर । स्वर अभ्यास एसो करत, होय उमर भरपूर ॥ ३४८॥ कथित भाव विपरीत जो, स्वर चाले तनमांहि । मरण निकट तस जाणजो, यामे संशय नांहि ॥ ३४९ ॥ सार्द्ध युगल घटिका चले, चंद्र सूर स्वर वाय । श्वास त्रयोदश सुखमना, जाणो चित्त लगाय ॥३५०॥ अष्ट प्रहर जो भानघर, चले निरंतर वाय । ▾ तीन वरसका जीवणा, अधिक न रहे काय ॥ ॥ पाठांतरे ॥ यामे संशयं नांहि ।। ३५१ ॥ चले निरंतर पिंगला, पोडश प्रहर प्रमान । दोय वरस काया रहे पीछे जावे प्रान ॥ ३५२ ॥ भान निरंतर जो चले, रातदिवस दिन तीन । वरस एक रही होय फुनि, दीरघनिद्रालीन ॥ ३५३॥ सोलस दिन जो भानघर, चले रातदिन श्वास । चिदानंद निश्चल करी, जीवे ते इक मास ॥ ३५४ ॥
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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