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तत्त्व युगल जे भान घर, चलत पुत्र पहिछाण । निशानाथ घर होय तो, कन्या हिरदे आण ॥३०१॥ पूछत पावक तत्वों, गर्भपतन तस होय । . जनमे तो जीवे नहीं, विगत पुण्य नर सोय ॥ ३०२॥ प्रश्न प्रभंजन तत्वमें,. करतां छाया होर । अथवा विज्ञ विचारजो, गले गर्ममें सोय ॥३०॥ पूछत नभ परकासमें, गर्म नपुंसक जाण । चलत चंद कन्या कहो, वांझ भाव चित्त आण ॥३०४॥ शून्य युगल स्वरमांहि जो, गर्म प्रश्न करे कोय । ताथी निश्चय करी कहो, कन्या उपजे दोय ॥३०५॥ चंद सूर दोउ चलत, चंद होय बलवान । गर्भवतीना गर्भ में, सुता युगल पहिचान ॥३०६॥ चंद सूर दोउ चलत, रवि होय बलवान । गर्भवतीना गर्भ में, पुत्र युगल पहिचान ॥३०७॥ जौण तत्त्वमें नारीकुं, रहे गर्भओधान । अथवा जनमे तेहनो, फल अनुक्रम पहिचान ॥३०८॥ राज्यमान सुखीया महा, अथवा आपहू-भूप । . रहे गर्भ धरणी चलत, होवे काम सरूप ॥३०९॥