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(१००) चंद्र चलत पूछे कोउ, पूरण दिशिम आय । गर्भवतीना गर्भ में, तो कन्या काय ॥२९२॥ दिवसपति पूरण चलत, पूछे पूरण मांहि । पुत्र पेटमें जाणजो, यामें संशय नाहि ॥२९३॥ स्वर सुखमना आयके, पूछे गर्भ विचार । नार केरी कूखमें, गर्भ नपुंसक धार ॥२९४॥ भान चलत पूछे कोउ, वाकुं चंदा होय । पुत्र जनम तो जाणजो, पण जीवे नहि सोय ॥२९५॥ दिवसपति संचारमें, करे प्रश्न कोउ आय । स्वर सूरज वाकुं हुआ, सुखदायक सुत थाय ॥२९६॥ करे प्रश्न शशि स्वर विषे, वाकुं जो रवि होय । होय सुता जीवे नहि, कहो एम तस जोय ॥२९७॥ चंद चलत आवी कहे, वाकुं चंद उद्योत । कन्या निश्चे तेहने, दीर्घ स्थिति धर होत ॥ २९८॥ चलत मही सुत जाणजो, प्रश्न करत तिण वार । राजमान सुखीया घणा, रूपे देवकुमार ॥२९९॥ उदक तत्त्वमें आयके, करे प्रश्न जो कोय । सुत सुखीया धनवंत तस, षटरस भोगी होय ॥३०॥