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________________ (१०८) रणमें जे घायल हुवे, तेहनी पूछे वात । चिदानंद ते पुरुषकुं, उत्तर एम कहात ॥२८३॥ आपणी दिशथी आयके, पूछे पूरण मांहि । जास नाम कहे तास सुण, घाव जाणजो नाहि ।।२८४॥ पूछे खाली स्वर.विणे, घायलका परसंग। जस पूछे तस रण विषे, घाव कहीजे अंग । २८५॥ पृथ्वी उदर बताइए, जल चलता पग जाण । पावक उर हिरदा विषे, वायु जंघा वखाण ॥२८६॥ घाव शीशमें जाणजो, चलत तच आकाश । स्वरमें तत्त्व विचारके, पृच्छककुं इम भाष ॥२८७॥ पूरण प्राण प्रवाहमें, निज तत घर स्वर होय । प्रबल जोग आवी मल्या, सुखे विजय लहे सोय ॥२८॥ आपणे स्वर जल तच है, शत्रुकुं नहि होय । रिपु मरण निज हाथथी, जीत आपणी होय ॥२८९॥ गर्भतणा परसंग अब, सुणजो चित्त लगाय । स्वर विचार तासुं कहो, जो कोइ पूछे आय ॥२९०॥ क्लीब कन्यका सुत जनम, गर्भपतन वा धार । दीर्घ अल्प आयुतणा, भाखो एम विचार । २९१॥
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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