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________________ ( १०७) महाकटक सनमुख चले, थोडासा दल जोड । पूरण तत्त्व प्रकाशमें, जीत लहे विधि कोड ॥२७४॥ मही तत्त्वमें युद्ध वा, करे प्रश्न परियाण । दोउ दल सम उतरे, इम निहचे करी जाण ॥२७५॥ करे प्रश्न परियाण वा, वरुण तत्त्वके मांहि । होय मेल तिहां परस्परी, युद्ध जाणजो नाहि ॥२७६॥ मही उदक होय एककुं, दूजाकुं जो नांहि । मही वरुण तिहां जीतीए, यामें संशय नाहि ॥२७७॥ प्रश्न करे अथवा लडे, अथवा करे प्रयाण । वहत हुताशन तेहनी, रणमें होवे हाण ॥२७८॥ प्रश्न प्रयाण युद्ध जे करे, अनिल तत्वमें कोय । निश्वेथी संग्राममें, भागे पहेला सोय ॥२७९॥ व्योम वहत कोउ भूपति, करे प्रश्न परियाण । अथवा युद्ध तिण अवसरे, करत मरण तस जाण ॥२८॥ चंद्र चलत भूपति मरण, सम जोधा रविमांहि । वायु वहत भंजे कटक, संशय करजो नांहि ॥२८॥ नामधेय सदृश कही, पूछे पूरण मांहि ।। प्रथम नाम जस उच्चरे, तस जय संशय नांहि ॥२८२॥
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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