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महाकटक सनमुख चले, थोडासा दल जोड । पूरण तत्त्व प्रकाशमें, जीत लहे विधि कोड ॥२७४॥ मही तत्त्वमें युद्ध वा, करे प्रश्न परियाण । दोउ दल सम उतरे, इम निहचे करी जाण ॥२७५॥ करे प्रश्न परियाण वा, वरुण तत्त्वके मांहि । होय मेल तिहां परस्परी, युद्ध जाणजो नाहि ॥२७६॥ मही उदक होय एककुं, दूजाकुं जो नांहि । मही वरुण तिहां जीतीए, यामें संशय नाहि ॥२७७॥ प्रश्न करे अथवा लडे, अथवा करे प्रयाण । वहत हुताशन तेहनी, रणमें होवे हाण ॥२७८॥ प्रश्न प्रयाण युद्ध जे करे, अनिल तत्वमें कोय । निश्वेथी संग्राममें, भागे पहेला सोय ॥२७९॥ व्योम वहत कोउ भूपति, करे प्रश्न परियाण । अथवा युद्ध तिण अवसरे, करत मरण तस जाण ॥२८॥ चंद्र चलत भूपति मरण, सम जोधा रविमांहि । वायु वहत भंजे कटक, संशय करजो नांहि ॥२८॥ नामधेय सदृश कही, पूछे पूरण मांहि ।। प्रथम नाम जस उच्चरे, तस जय संशय नांहि ॥२८२॥