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सुखमन-स्वर संचारमें, कीजे आतम ध्यान । हिरदगति अहिभक्षकी, लहीए अनुभवज्ञान ॥२२०॥ आतमतत्त्व विचारणा, उदासीनता भाव । मावत स्वर सुखमन विषे, होवे ध्यान जमाव ॥२२१॥ चर थिर ताजी ए कही, द्विस्वभावकी बात । इण अनुक्रमथी आरभी, कारज सकल कहात ।।२२२॥ तत्वस्वरूप नीहाळवा, कहुं उपआय विचार । भाव शुभाशुभ तेहने. अधिक हियामें धार ॥२२३॥ श्रवण अंगुठा मध्यमां, नासापुट पर थाप । नयण तजेनीथी ढकी, भृकुटीमां लख आप ॥२२४॥ पडे बिंदु भूकुटी विषे, पीत श्वेत अरु लाल । नील श्याम जैसी हुवे, तैसी तिहां निहाल ।। २२५॥ जैसा वर्ण नीहारीए, तैसा तत्त्वविचार । श्वास गति स्वरमें लखो, इच्छा फुन आकार ॥२२६॥ प्रथम वायु स्वरमें वह, दुतीय अगनि वखाण । त्रीजी भू चोथु सलिल, नभ पंचम मन आण ॥२२७।। वाम दिशाथी स्वर ऊठी, वहे पिंगलामांहि । ताईं संक्रम कहत है, यामे संशय नांहि ॥ २२८ ॥
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