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(८४ ) वायु अगनि नभ तीन ए, चर काजे परधान । तत्व हियेमें जाणीए, उदय होत स्वर भान ॥१६८॥ रोगीकेरो प्रश्न नर, जो कोउ पूछे आय । ताकुं स्वास विचारके, इम उत्तर कहेवाय ॥१६९॥ शशि स्वरमें धरणी बलत, पूछे तस दिसमाहि । तासे निहचे करी कहो, रोगी विणसे नांहि ॥१७॥ चंद्र बंध सूरज चलत, पूछे डाबी ओड । रोगीको परसंग तो, जीवे नहीं विधि कोड ॥१७१।। पूरण स्वरशुं आयके, पूछे खाली मांहि । तो रोगीकुं जाणजो, साता होवे नाहि ॥१७२॥ खाली स्वरशुं आयके, वहते स्वरमें वात । जो कोउ रोगीनी कहे, तो तस नहि ज घात ॥१७३॥ वाय पित कफ तीन ये, भयो पिंडत्रय जोग । समथी सुख होय देहमें, विषम हुआ होय रोग ॥१७४॥ वाय चोराशी पिंडमें, पित्त पचीश प्रकार । कफ त्रय भेद वखाणीए, द्वादश सत चित्त धार ॥१७५॥ वायु निवास उदर विषे, स्वामी हे तस सूर । फुनि शत धमणी मांहि ते, रहत सदा भरपूर ॥१७६॥