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( 23 ) निशापति स्वर चैत सुदि, पांचमको नवि होय । राजदंड महोटा हुवे, संशय इहां न कोय ॥१५९॥ चैत्र सुदि छ?के दिवस, चंद्र चले नहि जास । वरस दिवस भीतर सही, विणसे बंधव तास ॥१६॥ चले न चंदा चैत सित, सप्तम दिन लवलेश । तस नरकेरी गेहिनी, जावे जमके देश ॥१६॥ तिथि अष्टमी चैत्र शुदि, चंद बिना जो जाय । तो पीडा अति उपजे, भाग्ययोग सुख थाय ॥१६२।। तिथि अष्टमनो चैत सित, दीनौ फल दरसाय । होय शशि शुभ तत्त्वमें, तो उलटुं मन भाय ।।१६३।। तत्व बाणमें कहत हुँ, प्रश्नतणो परसंग । इणविध हिये विचारके, कथीए वचन अभंग ॥१६४॥ जल धरणीके जोगमें, प्रश्न करे जे कोय । निशानाथ पूरण वहत, तसबारज सिद्ध होय ॥१६५।। अनल अगन आकाशको, जोगी शशि स्वरमांहि । होय प्रश्न करता थका, तो कारज सिद्ध नांहि ॥१६६॥ क्षिति उदक थिर काजकुं, उडुगणपति स्वरमांहि । तत्वयुगल ए जाणीएं, चर कारजकुं नांहि ॥१६७॥
१ चंद्र.