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________________ ( ८२ ) निशापतिके गेहमें, जल धरणी परवेश । करे आय जो तिण समे, तो सुख देश - विदेश ॥ १५०॥ अपर तव निज नाथ घर, वहे अधम फल जाण । उदक मही जो भानु घर, तो मध्यम चित्त आण ॥ १५१ ॥ एक अशुभ फुन एक शुभ, तीनुंमें जो होय । सिद्ध होय फल तेहनुं, मध्यम हिचे जोय || १५२|| सहु परीक्षा भावमें, मेष भाव बलवान । ता दिन तत्र निहारी, फल हिरदे दृढ आन || १५३॥ अब जे जोवणहार नर, तेहनो कहूं विचार । आप लखी अपणे हिये, अपणो करहुं विचार ।। १५४ ॥ नवि होय । जोय ॥ १५५ ॥ चैत्र सुदि एकम दिने, शशिस्वर जो तो तेहने तिहुं मासमें, अति उद्वेग मधु मास सित बीज दिन, चले न जो स्वर चंद | गमन होय परदेशमें, तिहां उपजे दुःखदंद || १५६॥ चैत्र मास सित बीजकुं, चंद चले नहि आय । तो ताके तनमें सही, पितज्वरादिक थाय ॥१५७॥ मरण होय नव मासमें, जो स्वर जाणे तास । मधु मास सित चोथ, जो नवि चंद्र प्रकाश ॥ १५८ ॥
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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