SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६१) तीन तत्र अवशेष जे, स्वरमें तास विचार | मध्यम निष्ट कह्यो तिको, पूर्वकथित चित्त धार ॥ १४१ ॥ 1 राजभंग परजा दुःखी, जो नभ वहे स्वरमांहि । पडे काल वह देशमें, यामें संशय नांहि ॥ १४२ ।। स्वर सूरजमें अग्निको. होय प्रात परवेश । , रोग सोगथी जन बहु, पावे अधिक क्लेश || १४३॥ काल पडे महीयल विपे, राजा चित्त नवि चेन । सूरजमें पावक चलत, एम स्वरोदय वेन ॥ १४४ ॥ नृप विग्रह कछु उपजे, अल्प वृष्टि पुन होय । सूरजमें अनिलको, चिदानंद फल जोय ॥ १४५॥ सुखमन स्वर जो ता दिवस, प्रातःसमय जो होय | जोवणहार मरे सही, छत्र भंग पुन, जोय ॥ १४६ ॥ कहूक थोडो उपजे, कहूक तेहुं नांहि । सुखमन स्वरको इन परे, फल जाणो मनमांहि । १४७॥ दुविध रीत जोवणतणी, कही वरसनी एम । त्रीजी आगल जाणजो, घरी हियडे अति प्रेम ॥ १४८॥ माघ मास सित सप्तमी, फुनि वैशाखी त्रीज । प्रातः समयको जोइए, चरस दिवसको बीज ॥१४९॥ "
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy