________________
(८८)
चलत- तत्व जल तिण समे, शशि स्वरमें जो आय । ताको फल अब कहत हुँ, सुणजो चित्त लगाय ॥१२३॥ मेघवृष्टि होवे घणी, उपजे अन्न अपार । सुखी होय परजा सहु, चिदानंद चित्त धार ॥१२४॥ धर्मबुद्धि सहुकुं रहे, पुण्य दानथी प्रीत । आनंद मंगल उपजे, नृप चाले शुभ नीत ॥१२५।। शशि स्वरमें ये जाणीए, तत्वयुगल सुखकार । तव तीन आगल रहे, तिनको कहुं विचार ॥१२६॥ लगे मेष संक्रांत तव, प्रथम घडी स्वर जोय । जैसो स्वरमें तत्त्व व्है, तैसो ही फल होय ॥१२७॥ जो स्वरमें पावक चले, अल्प वृष्टि तो होय । रोग दोख होवे सही, काल कहे सहु कोय ॥१२८॥ देशभंग परजा दुःखी, अग्नि तत्व परकाश । दोउ स्वरमें होय तो, अशुभ अहे फल तास ॥१२९॥ वायु तत्व स्वरमें चलत, नृप विग्रह कछु थाय । अल्प मेघ वरसे मही, मध्यम वर्ष कहाय ॥ १३० ॥ अर्द्धासा अन्न नीपजे, खड थोडासा होय । अनिल तत्वका इणी परे, मनमांहि फल जोय ॥१३१॥