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________________ . ( ४ ) इम विवेक हिरमें धारी, स्त्र पर भाव विचारो; कायाजीव ज्ञानग् देखत, अहि कंचुकी जेम न्यारो.संतो० गर्भादिक दुःख वार अनंती, पुद्गल संगे पाये; पुद्गल संग निवार पलकमें, अजरामर कहेवाये. संतो०९६ राग भाव धारत पुद्गलथी, जे अविवेकी जीव; पाय विवेक राग तजी चेतन,बंधन विगत सदीव.संतो०९७ कर्म बंधनो हेतु जीवकुं, राग द्वेष जिन भाखे; तजी राग अरु रोष हियेथी,अनुभव रस कोउ चाखे.सं०९८ पुद्गल संग विना चेतनमें, कर्म कलंक न कोय; जेम वायु संयोगविना जल-मांही तरंग न होय. संतो०९९ जीव अजीव तत्त्व त्रिभुवनमें, युगल जिनेश्वर भाखे; अपर तत्व जे सप्त रहे ते, संयोगिक जिन दाखे.संतो०१०० गुण पर्याय द्रव्य दोउके, जुवें जुवे दरशाये; ए समजण जीनके हिये उतरी,ते तो निज घर आये.सं.१०१ भेद पंचशत अधिक त्रेशठ, जीवतणा जे कहिये ते पुद्गल संयोगथकी सहु, व्यवहारे सरदहीए. सं.१०२ निश्चय नय चिद्रूप द्रव्यमें, भेदभाव नहि कोयः बंध अबंधकता नय पंखथी, इणविध जाणो दोय.सं.१०३ १ सर्प. २ कांचळी. ३ बीजा. ४ सात. ४A जूदा जदा. ५ पांचसे त्रेसठ. ६ श्रद्धीए. ७ पक्षथी.
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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