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________________ ( ४१ ) पुद्गलहुंके वस्त्र आभूषण, तेथी भूपित काया; पुद्गलहुंका चमर छत्र, सिंहासन अजब बनाया. सं०७८ पुद्गलहुंका किल्ला कोट अरु, पुद्गलहुंकी खाइ; पुद्गलहुंका दारुगोळा, रच पच तोप बनाई. संतो०७९ पर पुद्गल रागी थइ चेतन, करत महा संग्राम; छलबल कल करीएम चिंतवे, राय आपणुं नाम.सं०८० ऋद्धि सिद्धि बंके गढ ताडी, जोडी अगम अपार; पण ते पुद्गल द्रव्य स्वभावे, विणसत लगे न वार. सं०८१ पुद्गलके संयोग वियोगे, हरख शोक चित्त धार; अथिर वस्तु थिर होय कहो किम,इणविध नहीय विचारे.सं. जा तनको मन गर्व धरत है, छिनछिन रूप निहार; ते तो पुद्गल पिंड पलकमें, जल बल होवे छार सं०८३ इणविध ज्ञान हीयेमें धारी, गर्व न कीजे मित्त, अथिर स्वभाव जाण पुद्गलको तजो अनादि रीत.सं०८४ परमातमथी नेह निरंतर, लाया त्रिकरण शुद्ध पावो गुरुगम ज्ञान सुधारस, पूर्वापर अविरुद्ध, सं०८५ १ जे. २ क्षणे क्षणे. ३ खाख. ४ अमृत
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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