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नित्य अनित्यादिक जे अंतर, पक्ष समान विशेष; स्याद्वाद समजणनी शैली, जिनवाणीमें देख.संतो०६९ पूरण गलन धर्मथी पुद्गल, नाम जिणंद वखाणे; केवल विण परजाय अनंती, चार ज्ञान नवि जाणे.संतो०७०. शुभ अशुभ अशुभथी जे शुभ, मूल स्वभावे थाय; धर्म पालहण पुद्गलनो इम,सतगुरु दीयो बताय.संतो०७१ अष्ट वर्गणा पुद्गल केरी,पामी तास संयोग; भयो जीवकुं एम अनादि, बंधन रूपी रोग.संतो० ७२ गहत वरगणा शुभ पुद्गलकी, शुभ परिणामे जीव; अशुभ अशुभ परिणाम योगथी, जाणो एम सदीव.सं०७३ शुभ संयोगे. पुण्य संचवे, अशुभ संयोगथी पाप; लहत विशुद्ध भाव जब चेतन, समजे आपोआप सं०७४ तीन भुवनमें देखिये सहु, पुद्गलका विवहार; पुद्गलविण कोउ सिद्ध रूपमें, दरसत नहि विकार. सं०७५ पुद्गलहुंके महेल मालिये, पुद्गलहुंकी सेज पुद्गल पिंड नारीको तेथी, विलसत धारि हेज.सं०७६ पुद्गल पिंड धारके चेतन, भूपति नाम धरावे; पुद्गल बलथी पुद्गल उपर,अहनिश हुकम चलावे.सं०७७
१ पोते पोतानी मेळे. २ व्यवहार. 3 हेत.