________________
..
(
८)
जात्यपात्य कुल न्यात न जाकुं, नाम गाम नवि कोइ; पुद्गल संगत नाम धरावत,निजगुण सघळो खोइ.संतो०६० पुद्गलके वश हालत चालत, पुद्गलके वश बोले; कहुंक बेठा टक टक जुवे, कहुंक नयण न खोले.संतो०६१ मन गमतां कहुं भोग भोगवे सुख सय्यामे सोवे; कहुंक भूख्या तरस्या बाहर, पडया गलीमें रोवे.संतो०६२ पुद्गल वश एकेंद्रि कबहु, पंचेंद्रि पण पावे, लेश्यावंत जीव ए जगमें, पुद्गल संघ कहावे. संतो०६३ चउदे गुण स्थानक मारगणा, पुद्गल संगे जाणो; पुद्गल भावविना चेतनमें, भेदभाव नवि आणो.संतो०६४ पाणीमांहे गले जे वस्तु, जले अग्नि संयोग; पुद्गलपिंड जाण ते चेतन,त्याग हरख अरु सोग.संतो०६५ छाया आकृति तेज द्युति सहु, पुद्गलकी परजाय; सहन पडन विध्वंस धर्म ए, पुद्गलको कहेवाय.संतो०६६ मळ्या पिंड जेहने बंधे बे, काले विखरी जाय; चरम नयण करी देखो एने, सहु पुद्गल कहेवाय.संतो०६७ चौदे राजलोक घृत घट जिम, पुद्गल द्रव्ये भरिया; खंध देश प्रदेश भेद तस, परमाणु जिन कहिया.संतो०६८ - १ पर्याय.