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________________ ( ४२ ) सवाल उभो थएल छे तेज छे. अर्थात् ते केळवणीनो सवाल छे. हवे ज्यारे प्रत्येक माणस पोतपोतानी स्थिति प्रत्ये लक्ष आपवा लागेल छे त्यारे जैनो पोतानी स्थितिनुं बारीक अवलोकन करवा चकशे नहीं तथा ज्यां सुधारानी जरूर जणाय त्यां ते करशे एवी हुं आशा राखंछ. बोनाओ पातानी अज्ञानताना कारणमां गरीबाईन बहानुं बतावी शके; परंतु निदान उत्साही जैनो, के नेमणे व्यापारवडे पुष्कळ धन पेदा कर्य छ, तेमना तरफथा आq कारण, ने खसत करीने आ वेळाए, मान्य करी शकाय नहीं. केळवणी ( ज्ञान ) तमारा धर्ममां एक रत्न गणाय छे अने हालना समयमां, के ज्यारे सुधारा विषे अधुरुं ज्ञान धरावनारा लोको धर्म मात्रने अनुपयोगी गणे छे किंवा जे धर्मोनी उत्पत्ति पूर्वमा थवा पामी छे तेने तो हसी काढे छे त्यारे, प्रस्तुतनी कॉन्फरन्स तथा प्रदर्शनमां धर्म अने ज्ञाननो निकट. संबंध आनंददायी लागे छे. पण मारे अत्रे जणावq जोईए के, सघळा धर्मो सत्यने शाधे छे के जे मनुष्यना धर्ममां सर्वोपरि अने श्रेष्ठ छे. तेथी तमारे तमारा धर्म प्रत्ये यथायोग्य पूज्य बुद्धि, के जे सर्व काळमां होवी आवश्यक छ तथा जे विना उडो अभ्यास थवो दुर्लभ छे, ते राखवी. तो पण तमारे अबाधित शोध करवामां तथा सत्यनी खरा मनथी गवेषणा करवामां पाछा पडवु नहीं; अने जो ते शोधने अंते तमारा पूर्वजोथी चालता आवेला सिद्धांतो करतां अन्य सिद्धांतो यथाथ छे एम तमारी तर्क शक्तिथी तमने लागे तो मारी एवी मान्यता छे के एक निर्जीव जुना सिद्धांतने बाध न आवे एवा विचारथी सत्य तरफ दुर्लक्ष नहीं करवानी हिम्मत तथा प्रमाणिकपणुं धारण करशो. * तमारा धर्मनां सिद्धांतो पैकी एक सिद्धांत ऐवा छे के सृष्टिमां दरेक चीज सचेतन छे, अने तेमां आत्मा अथवा जीव छे. ए सिद्धांत घणो मोहक छे. एज ब्राह्मण धर्ममां सर्व ब्रह्म ए रूपमां अने वर्ड्सवर्थ तथा शेली जेवा कुदरतने पूजनारा कवियोनी कवितामां तथा मुसलमानोना सुफी पंथमां नजरे आवे छे. ( रुशिया तथा जपाननी लढाईना संबंधे ) मंचुरीयामां थती हजारो जानानी खुवारीनुं * जैन धर्ममा संसारी जीव वे प्रकारना मानेला छे. त्रस अने स्थावर पतानी मेळे भयादिना प्रसंग खशी शके ते त्रस, जेमां बे इंद्रियथी मांडीने पंचेंद्रिय सुधीना जीवोनो समावेश थाय छे. जे पोतानी मेळे खसी शके नहि ते स्थावर, जेमां पृथ्वी, पाणी, तेज, वायु अने वनस्पति ए पांच एकेंद्रिय ( मात्र स्पर्श विषययुक्त ) जेमनामां अन्य मत वाळा प्रायः जीव मानता नथी तेवानो समावेश थाय छे. एने लेइनेज श्री. युवराज महाराजे आ इसारो कर्यो लागे छे. जैनो ईश्वरकृत जगत् मानता नथी ते पण ध्यानमा राखवू जोईए. तेमना मते जगत् अनादि छे. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005585
Book TitleTriji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Chunilal Vaidya
PublisherReception Committee
Publication Year1906
Total Pages266
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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