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________________ ( ४३ ) वर्णन वांचवाने बदले आवा एक शांतिमय धर्म, के जे आपणे जे वस्तुने सामान्यतः निर्जीव गणीए. छाए तेमां पण जीव तथा आत्मा होवानुं माने छे, ते धर्मनो विचार करतां आनंद उपने छे. सृष्टिमां कोइ पण वस्तु गमे एवी सूक्ष्म अथवा नकामी जणाती होय तो पण तेनो अनादार करवा आपणने अधिकार नथी, एवो सिद्धांत आग्रहपूर्वक प्रतिपादन करवो जोइए. तो पण जो हुं एवं कहुं के, परमदयालु ईश्वरे आपणा हित माटे वस्तुओ सरजी छे के जे जो घटित उपयोग करवामां आव तो मनुष्य, जे परमेश्वरे सरजेला प्राणीआमां सर्वोपरि छे, तेने मनुष्य भव सार्थक करवाना प्रयत्नमां साधनभूत थइ पडे एवी छे, तो तमे माटु लगाडशो नहीं. छेवटे हुं जणावीश के, जो के धर्मनी अगत्य छे तो पण आपणे धर्माध बनी जवू जोइत नथी. दरेक धर्मना पंथवाळा एम माने छे के पोताना धर्मे जे मार्ग लीधो छ ते सत्यनो छे. माटे आपणे आपणा पंथना प्रवासनी धुनमां बीजा पंथना आपणा जेवा प्रवासी तरफ दिलसाजी तथा आतिथ्य बताववानुं भली न ज जोईए. सत्य ए विशाळ अने अखूट छे अने. सर्व लोक तथा संप्रदायने पहोंची शके एम छे. ए खोजतां कंइ द्रव्यनी पेठे खूटे एम नथी के जेथी करीने एनी शोधमां धकाधकी करवानी जरूर होय. आथी एक माणस गमे ते धर्म पाळतो होय तोपण आपणे तेना तरफ सहानुभूति तथा आदरभाव राखवो जोईए. मारा पिताश्रीनो तथा एमना राज्धयोरणनो उद्देश पोतानी प्रजामा ऐक्य करवानो छे. हुं आशा राखंछं के, आप बधा राज्यनिष्ठ प्रना के सारा पडोशीओ तरीके अमारी साथे सहायभूत थई प्रथम वडोदरा राज्यमां अने पछी हिंदमां ऐक्यता प्रसरावशो. जो आपणाथी आटलं थाय तो पछी पृथ्वपिरना मनुष्य मात्रनी एक पालामेन्ट ( महासभा ) अस्तित्वम आवेली जोई तेमां सर्व देशनी प्रजानुं सम्मिलन जोवाने भाग्यवान् थईए. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005585
Book TitleTriji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Chunilal Vaidya
PublisherReception Committee
Publication Year1906
Total Pages266
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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