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________________ ( ४१ ) आवकार आपवामाटे, मने अत्रे हाजर थवाने जणाव्युं छे. जोके मारा पितानी जग्या लायक ते पूरवाने मने पोताने हुं अशक्त समजुं हुं तो पण आटलुं तो खात्रोथी कहुं हुं के आ प्रदर्शनमा प्रमुख स्थान लेवाने मने मोटी खुशाली उपजी छे के, जे खुशालीमा आ मोटी संख्याने हाजर थयेली जोई मोटो वधारो थयो छे. कारण के तमारी हाजरी बतावे छे के, हिंदुस्तानमा हुन्नर उद्योगनी, संसारी, तेमज धार्मिक वाचताना संबंधां स्वतंत्रपणे संशोधन करवाने बघा एकत्र थई शके छे तथा हिंदी प्रजा सुधारानी बाबतमां आगळ वधवानी उत्कंठा राखे छे. आ जोवाथी मने खरेखरी खुशाली उपजे छे के तमो के जे दुनियाना प्राचीन धर्मो पैकी एकने माननारा छां ते तमारा धर्मनी प्राचीनता तथा सत्यताना संबंधमां शोध खोळ चलावी हालना जमानाने अनुसरती रीते आगळ वधवा लाग्या छो. युरोपे ए बाबतमां आपणो उत्साह सतेज कर्यो छे. कारण के, ऐतिहा सिक अति अमूल्य सूक्ष्यावलोकनथी भरपूर पुस्तको घणे अंशे त्यांज प्रगट थयां छे; तथा प्रोफेसरो जेकॉची, वेबर, अने ल्युमॅन जेवा विद्वानोए, जे जैन धर्मनां पवित्र पुस्तको घणे खरे ठेकाणे मळी आवे छे ते सिवाय बीजां ए धर्मनां पवित्र पुस्तकोमाथी खरी हकीकत शोधी काढी छे. हुं ज्यारे ऑक्सफर्डमा हतो त्यारे त्यांनी युनिवर्सिटोना क्लॅरन्डन प्रेसमांथी एवी केटलीक चोपडीओ प्रकट थई हती के जेयी जेओ, पूर्व देशमां उत्पत्ति पामेला धर्मों अथवा तो कोई अमुक धर्मनो विशेष अभ्यास करवानी खाएश राखता होय, तेओ पोतानी खाएश पार पाडी शके. जोईने खुशी के हिंदी साक्षरों, युरोपीयन विद्वानो तथा विद्वान डॉक्टर भंडारकर ने रा. भगवानलाल इंद्रजीना पगले, चाल्या छे के जेमणे जैन धर्मने लगता हालमां हाथ लागेला साहित्यांना संग्रहमा मोटो वधारो कर्यो छे. पण अत्यारसुधी जे करवामां आव्युं छे ते भविष्यमां जे करवानुं बाको छे ते आगळ नहीं जेवुं छे. कारण के मारे मन एम शंका रहे छे के जैन धर्मनां पवित्र पुस्तकोनो मात्र सोमो भाग हजी बहार पाडवा पाम्यो छे. तोपण आपणे एवी आशा राखीए के आवां कॉन्फरन्सो तथा प्रदर्शनो थवाथी युवान जैन विद्वानो विद्यानी खाणांमा वधु वधु उंडा उतरशे, तथा हालना समयमां गुप्तपण भंडारायेल मूल्यवान् द्रव्य प्रसिद्धिमां लावशे. पण विद्वत्ता तथा अमुक विषयमां प्रवीणता, सर्वदर्शी उत्तम पंक्तिनी केलवणी संपादन कर्या थकीज प्राप्त थाय छे. तेना अभावे प्राप्त थती नथी. आपनी आगळ हाल जे सवाल छे, ते हिंदुस्तानना भविष्य माटेनो जे लांबी मुदतथी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005585
Book TitleTriji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Chunilal Vaidya
PublisherReception Committee
Publication Year1906
Total Pages266
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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