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________________ (१२०) यो छे तेमां एक औषधी एवी छे के, जानवर ते चरे तो मनुष्यरुप कामे.. यशोमतिए आ वात सांभळी लीधी अने पोताना बळद थयेल पतिने ते झाड तळे चरावका लइ गइ. ते झाड तळे रहेल झाडपान चरतां विद्याधरे जणावेल औषधी पण ते बळदना चरवामां आवतां ते पोतार्नु पूर्व पुरुषरुप पाम्यो. तेम जगत्ना बधा धर्मोनू लक्षपूर्वक शोधन दोहन करतां तत्व मळशे. बंधुओ ! श्रीमद् हेमचंद्राचार्ये चार सं. जीवनीनी कथा सिद्धराजने कही तेनो उपनय आपणी शोधखोळनी बाबतने पण घणो उपयोगी छे. शोधखोळथी पण तत्व तरी आवशे. माटे बंधुओ ए अति अगत्यनी छे. प्राचीन शोधखोळनो विषय हिंदुस्तानमां नवा जेवोज गणी शकाय. तेमां पण आपणे जैनो तो ए बाबतमां बहु पछात गणाइए. ए बाबतनी शरुआतनुं तेम तेने हिंदमां थोडं घणुं दाखल कर्याने मान यूरोपियन पंडितोने, एश्याटिक सोसाइटीने अने थोडा घणा हिंदु शोधकने घटे छे. गृहस्थों ! जनरल कनिंगहाम, डॉ. बुलर, लुइराइस, डॉ. वीबर, डॉ. होर्नल, आदि विद्वान पंडितो, आ बधाए प्राचीन शोधखोळोपर घणुं अनवाळु नांख्युं छे. हिंदमांथी पण महूम डॉ. भगवानलाल, डॉ. भाउ दानी, डॉ. भंडारकर, मि. रतिराम दवे, शास्त्री हरि दत्त, महाराज श्री आत्मारामजी, तेमज यूरोपियनोमा, डॉ. पीटरसने आ बाबतमां बहु उपयोगी फाळो आप्यो छे. इन्डियन एन्टीक्वरी बोम्बे एश्याटिक सोसाइटीना रिपोर्टो विगेरे अने डॉ. भाउ दाजीना एन्शन्ट रीसचीस आ वगेरेए प्राचीन इतिहास आदि उपर घणो प्रकाश नांख्यो छे, छतां गृहस्थो! प्राचीन शोध खोळy एटलं बधु बहोकुं अने विशाळ क्षेत्र पडयुं छे,—उपर जणावेली बाबतो तो घणी घणी ओछी गणाय. __गृहस्थो ! मथुरामा एक जीन मंदिरमा जनरल कनिंगहामे एक लेख शोध्यो छे तेमां वीरभगवानना निर्वाण पछीनो तरतनो काळ लखेल छे. श्रीमद् आत्मारामजीए लखेल प्रश्नोत्तरोमां आ आखो लेख आपेल छे. मारवाडमां श्रीवीरप्रभना जीनालयमा एक लेख वीरप्रभुनी पछी सीतेर वरसनो छे अने तेमां कोइ रत्नशेखरसूरिनुं नाम छे, तेमां कांइ उपदेश छे. गृहस्थो ! आ बधी शोधोथी एक बीजो पण अगत्यनो निर्णय अने समाधान थाय एम छे. आपणा स्थानकवासी बंधुओ प्रतिमानो निषेध करे छे, अने प्रतिमा के जीन मंदिर नहीं होवानो घणा लांबा काळनो दावो करे छ; अने कहे छे के, प्रतिमा आराधकतो हमणांज थया छे. तेमने आ लेखो घणा बोधन अने सत्यना निर्णयनु, अने कदाग्रह छोडी दई परम उपकारक एवां प्रति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005585
Book TitleTriji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Chunilal Vaidya
PublisherReception Committee
Publication Year1906
Total Pages266
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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