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________________ (११९) वाननी प्रतिमाना पद्मासन निचेना भागपर जे जे लेखो होय छे, लांछन होय छे, ते ते तीर्थकरनी ओळखाण आपवा उपरांत ते बिंब क्यारे भरायां, क्यां भरायां, कोणे भराव्यां, कया आचार्ये, ए आदि विगत पुरी पाडतां होवाथी, आपणने ऐतिहासिक मोटो लाभ थशे. विषेश, बंधुओ ! कागळपत्र उपर लखाएला लेखो एकदम नाश पामे खरा, पण पथ्थर के धातु उपर कोतरेला तेमां पण आरसामां कोतरेला लेखो घणा काळसुधी टके छे, अने तेथी तेओ कागळपर लखाएली नोंधो करतां वधारे उपयोगी होय छे. तो बंधुओ! एवा लेखो आदिनी शोधो कराववी बहु आवश्यक छे. बंधुओ ! ए शोध खोळोथी प्राचीन स्थितीनां ज्ञान उपरांत पुद्गलीक अनित्यतानो ख्याल आवशे; जे परम कल्याणना एक अमोघ कारणरुप थशे. बंधुओ! वळी शोध खोळमाथी घणुं धणुं अवनवं जाणवा, सत्यासत्यना निर्णयनुं बनी आवशे. आ स्थळे मने अत्रे भराएला लाक्षणिक प्रदर्शनमां मूकेली चार संजीवनी न्यायना दृष्टांतनी छबी याद आवे छे. बंधुओ ! आपे बधाए ए छबी जोइ हशे, ए जोवा आपने भलामण करवी योग्य छे. गृहस्थो ! कळीकाळ सर्वज्ञ श्रीमद् हेमचंद्राचार्यने एक वखत गुजरातना राजा महान् सिद्धराज जयसिंहे प्रश्न कर्यु के, महाराज ! जगत्मां आटला बधा धर्मो छे ते बधा धर्मनो ने तत्वनो उपदेश करे छे तो तेमा सत्य तत्व शुं अने ते शामां छे ? श्रीमद् हेमसूरी जे जैनना अनन्य पवित्र आचार्य हता, तेओ धारत तो एकी अवाजे कही शकत के, सत्य तत्व श्रीजैनधर्ममा छे. अने राजा सिद्धराज ए अंगिकार पण करत, पण समयना जाण अने निष्पक्षपात बुद्धिना धणी निरपेक्षी एवा श्रीमद् हेमचंद्राचार्य शंखपुराणमाथी आपने जणावेल चार संजीवनी यशोमतिनी वात कही संभळावी. गृहस्थो ! मरहुम डॉ. पीटरसने पुनानी ढक्कन कॉलेजमां पोताना शिष्योने आ वात लेक्चररुपे नव वरप्त उपर कही हती. कोइ यशोमति नामनी स्त्रीने तेनो धणी तेनी बहेनपणी साथे यथेच्छ वर्तवा दे नहीं, तेथी ते बहेनपणीए तेने पोताना पतिने बळदमां वैक्रिय करवानी औषधि बतावी. यशोमतिए औषधिना प्रयोगथी पोताना पतिने वृषभ करी नांख्यो; पण गमे तेवी तोए पतिपरायण स्त्री होवाथी ते पस्तावा मंडी. वृषभ थएला पोताना पतिने फरी पुरुषनुरुप आपवान ते के तेनी सखी जाणतां न हता. आथी यशोमति बहु बहु खेद पामवा लागी. पछी पत्निधर्म मुजब हमेशा खेद पामती ते पोताना पतिने वनमां चरवा लइ जती. एक दिवस अंतरीक्षमां कोई विद्याधर पोतानी स्त्रीने वात वातमां कहेतो हतो के, आ अमूक झाड तळे औषधि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005585
Book TitleTriji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Chunilal Vaidya
PublisherReception Committee
Publication Year1906
Total Pages266
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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