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________________ ( १०६ ) अने ऐक्यता छे. ज्यारे आपणा बधा स्वधर्मी भाइओ एक संघमां ऐक्यताथी काम करे छे त्यारे ते संघनुं काम थाय छे. एवीज रीते प्रत्येक संत्र साथ रही काम करशे त्यारे आपणी कॉन्फरन्सनुं काम पार उतरशे. माटे बघा संघोनी ऐक्यतानी जरूर छ तेमज दरेक संघना जूदा जूदा माणसोमां पण संपनी जरूर छे, संप अने ऐक्यता वगर बधुं फोकट छे. कॉन्फरन्सना बंधारणने संगीन करवाना बीजा साधनोनो पण मोटे भाग्ये संप उपरज आधार छे. एटला वास्ते कॉन्फरन्सनी फतेहना बीजा बधा साधनो करतां संप वधारे अगत्यनुं छे. संप विषे थोडं घणुं बोलाई गयुं छे तोपण कॉन्फरन्सनी संगीनताना साधन तरीके हुं ते विषे आंही थोडुं बोलुं तो ते विषयान्तर नहीं कहेवाशे. दरेक मनुष्य, पछी जोइए तो ते राजा होय के रंक होय, जोगी होय के भोगी होय, गमे ते देशनो गमे ते जातनो अने गमे ते दरज्जानो ते होय, जोइए तो ते यूरोपखंडना एक सौथी सुधरेला देशनो गोरो वतनी होय अथवा तो ते आफ्रिकाखंडना एक सौथी जंगली मुलकनो एक हबशी होय, पण ते सुखनो विलासी होय छे. तेना दरेक दरेक प्रयत्ननुं पृथक्करण करतां मालम पडशे के, एनी ताकणी सुख सिवाय बीजी कांइ नथी. आवा सुख वास्ते जे साधनो छे तेमां संप एक मुख्य साधन छे. संप विना सुख अने संपत्ति होयज नहीं, सुखनां बीजां साधनो छे, तेनो पण घणे दरजे संप उपरज आधार छे. ज्यां संप नथी त्यां माणसो पोतानी असली स्थितीमां छे एम समजवं. कुसंप ए क्लेश अने पायमालीनुं घर छे, दुःख अने दरिद्रतानी निशानी छे. कोइ पण मोटुं काम आरंभवामां प्रथम संपनी जरुर छे. ज्यां सुधी दरेक जग्याए रहेता जैन बंधुओमां आपस आपसमा संप अने ऐक्यता नथी, ज्यां सुधी बधा मळी एक मते काम करता नथी, त्यां सुधी कॉन्फरन्सने संगीन फतेह मळवी मुश्केल छे, त्यां सुधी स्थानिक फंड पण थवुं मुश्केल छे अने काम करवावाळा जन पण मळवा मुश्केल छे. पक्षापक्ष थवाथी एकनी वात बीजो तोडवामां रहे छे. कुसंप ए एवो दुर्गुण छे के, ज्यां तेनो वासो होय त्यां न्यायान्याय अने सत्यासत्य जोवातुं नथी. सारुं शुं छे, व्याजत्री शुं छे, लाभ शामां छे तेनी कोइ दरकार करतुं नथी. जे वात तरफ लक्ष मात्र आपवामां आवे छे ते एज के, आपणा सामावाळाओ शुं कहे छे, तेओ शुं करे छे अने तेओ जे कहे के करे तेनाथी आपणे उलर्टुन कहेतुं तथा करकुं. आम एक पक्ष पोते पाछल रहे छे, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005585
Book TitleTriji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Chunilal Vaidya
PublisherReception Committee
Publication Year1906
Total Pages266
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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