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________________ (-९७ ) हमेशां चालती रहेती पाणीरुपी पैसानी शेरथी सिंचवां तत्पर थइ आपणे अहींआ बनीठणी, झेर, वेरभाव, ढोंग, दूर मूकी शोभा तेमज फजेती जोवाना इरादाथी महीं पण खरा दीलथी तन, मन, अने बनता धनथी मदद करी सात क्षेत्रनो उद्धार करवा आज्या छीए, एम आपणे मानवू जोइए. आ हेतु पार पाडवाने आ ठरावमा चार विभाग करूं छु. (१) संप, (२) अक्कल, ( ३ ) धन, ( ४ ) व्यवस्था. आपणा धर्मशास्त्र प्रमाणे जेम तीर्थंकरोनी परिषदमां अनेक जीवो पोताना स्वाभाविक झेर, वेर दूर करी एकदिल थइ व्याख्यान श्रवण करी कर्म मुक्त थवा आवता हता, अने पोतपोताना आशय सुधारवा प्रमाणे कर्म मुक्त थता हता तेम आ कॉम्फरन्सनी बेठकोमा प्रमुख साहेबथी मांडीने ते गरीबमां गरीब जैन भाइए आजना ठरावो कबूल राखी मनमां एम खरा अंतःकरणथी विचारी वर्तवू जोइए के, आ ठरावो मात्र अंहींआ सांभळी अंहींआज कागळपर छोडी न जतां तेमने बनती रीते तन मन अने धनथी पार पाडवाना छे. दाखला तरीके, सुतरना एक तारथी हाथी जेवा मोटा प्राणीने आपणे बांधी शकता नथी पण एवाज अनेक तार एकठा करी तेनुं मोटु दोरडं करीए तो तेनाथी हाथी नेवा मोटा प्राणीने बांधवो काइ मुश्केल नथी. तेनीज माफक आपणे सर्वे जैन भाइओ भिन्न भाव छोडी दइ एक संप थइए तो आपणी आ कॉन्फरन्सने फतेह मळवामां कांइ पण शक रहेतो नथी. आ उरावो पास करवा सहेला छे परंतु पार पाडवा माटे एकतो अक्कल अने बीजो पैसो जरुरनो छे. अक्कलतो मळे पण पैसो क्याय नथी माटे तेनुं दररोज ध्यान क. रवानं छे ते एवी रीतें के, आपणी कोमना धनाढयो आगेवानो अने अग्रेसरो, नायको, अने वीररत्नो जे जे मोटी रकमो आपे छे अने आपशे ते तमारा ठरावेला कामो माटे पुरती नथी एम तमो मारी माफक मानवा चुकशो नहि, कारण के ज्यारे आप, आ सभामां विराजमान थयेला गृहस्थो चर्म चक्षुथी निहाळशो तो एम मालम नहि पडशे के, एवो एक पण धनाढ्य एक्की वखते एक लाख रुपियाथी वधारे खरा मनथी कोमनी दाझ जाणी कोमना उद्धार माटे आपी दे तेवो वीररत्न न होय, अगर तेवो होय एम मानीए अने कदाच उदारताथी आपी दे तो ते केटला वखत सुधी तमारा महत्व ठरावो माटे परता छे ते तमो विचार करी ल्यो. ते रुपिया मात्र एक खाबोचीआना पाणी जेवा छे, तमारे तेथी लोभाइ न जवू, तेम एम पण न मानवू के हवे तमासे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005585
Book TitleTriji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Chunilal Vaidya
PublisherReception Committee
Publication Year1906
Total Pages266
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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