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________________ (८७) निशाणी ८. भरुचना शा. अनोपचंद मेळापचंदन भाषण. मानवंता प्रमुख साहेब, प्रिय जैनबंधुओ अने बहेनो, केळवणीना विषय उपर मारी अगाउना विद्वान वक्ताओ पासेथी आपणे घणुं सांभळ्युं छे अटले स्वभाविक रीते नवीन कहेवानुं घणुंज थोड़ें छे. केळवणीनी दरखास्तने अनुमोदन आपवाने मने फक्त दश मीनीट आपवामां आवी छ तेथी पण हुं मारी जातने भाग्यशाळी मार्नु छं अने तेटला वखतमां आप महाशयोने ने कंइ हुं कहुं ते महेरबानी करी शांतताथी श्रवण करशो. गृहस्थो! विचार करो के, आजना मांगळिक अवसरे आ महान मंडपमा आखा हिंहुस्ताननो समस्त जैन संघ भेगो थयो छे, विद्वान वक्ताओना भाषणो सांभळी तेने अनुमोदन आपी जैन कोमनी अने जैन धर्मनी उन्नति करवाने आपणे तत्पर थइ रह्या छीए. जे कॉन्फरन्से जैन कोमने झळकाटमां आणी छे, जेना कार्यों विषे लांबो वखत थयां न्युसपेपरद्वारे विवेचन चालु छे ए बधार्नु उपादान कारण शं ? एन उपादान कारण एने जन्म आपनार आपणी सनमुख वीराजेला कॉन्फरन्सना एक जनरल सेक्रेटरी जैन कोमना हीरा, कॉन्फरन्स पिता कहीए तोपण चाले एवा एक विद्वान नररत्न मि. ढढा छे. एमनी उंची केळवणीना प्रतापेज आपणे आ महान कार्य आरंभवाने अने वीजा धनवान अने विद्वानोनी मददी धोदीनप्र तिदीन फतेहमंदीथी पार पाडवाने शक्तिवान थया छीए. आ केळवणांथी थता लाभनो एक प्रत्यक्ष दाखलो छे. महाशयो! दूरना देशो तरफ अने आपणी भाइबंध कोमो तरफ नजर करीशं तो आपणने मालम पडशे के, देशोन्नति, धर्मोन्नति, कोमनी उन्नति अने प्रत्येक कु टुंबना सुखीपणानो आधार केळवणी उपरन छे. ब्रिटीश शहेनशाहत आपणा उपर जे सर्वोपरिसत्ता भोगवे छे ते तेमनी केळवणीनाज प्रतापे. अमेरिका देश धंधा हुन्नरनी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005585
Book TitleTriji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Chunilal Vaidya
PublisherReception Committee
Publication Year1906
Total Pages266
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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