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________________ मरवू तो पडेज छे. परंतु एक रस्तो छे; ते ए छे के अजातं नैव गृहणाति (जे जन्मे नहि तेने मृत्यु ग्रहण करी शकतुं नथी) माटे हे पुत्र ! कुरुयत्नं अजन्मनि॥ ( जन्म न लेवो पडे तेवो प्रयत्न कर. ) अर्थात् एवं धर्मसाधन कर के जेथी फरीने जन्मकुंज पडे नहि, अर्थात् आ भवमांज मोक्ष प्राप्त थइ जाय. एवो प्रयत्न एज छे के, ज्ञानदर्शन चरित्रनुं सम्यक प्रकारे आराधन कर, तेथीज प्राणी मोक्ष मेळवी शके छे. बाळकने पण संज्ञा पूरेपूरी होय छे. पोतानी माताना वारंवार बोलेला आवां वचनो उपर इहापो करतां तेना दरेक बाळकने पोतानी बाल्यावस्थामां पारणा. मांज जातिस्मरणज्ञान थयुं, वैराग्य उत्पन्न थयो, अने उमर लायक थये दरेक चारित्र लइ लइने सद्गतीना भानन थया. आ नाना सरखा दृष्टांत उपरथी आपणे बहु धडो लेवानो छे. आवी माताओ पण क्यां छे ! क्याथी होय ! एनी कांइ जुदी खाणो नथी. ए बधुं स्त्री के. ळवणीनुं परिणाम छे. स्त्रीवर्गने विशेष आवश्यकता धार्मिक केळवणीज छे; एवी के. ळवणी लीधेली माताओ पोताना बाळकने आवो उपदेश आपी शके. वखत बहु थोडो मळेलो होवाथी हुं वधारे कहेवा अशक्त छ, पण टुंकामां एटलं जणावू छु के, तमे तमारुं मध्य बिंदु जाळवनो. आ कॉन्फरन्स तमने मोटा व्यापारी थवा, मोटा अमलदार थवा के मोटा धनाढ्य थवा इच्छती नथी, पण त. मने मोटा धार्मिक थवा इच्छे छे. बीजा तो बधा धर्मरुप कल्पवृक्षना डाळां पांदडां छे, धर्मी पुरुषने ए तो बधुं स्वयमेव इच्छाविना प्राप्त थाय छे. माटे मारी छेवटनी प्रार्थना छे के, एकांत अद्वितीय सारभूत धार्मिक केळवणी जाणीने बाइओ ने भाइओ तमे धार्मिक केळवणी ल्यो, अने तमारां बाळकोने धर्मज्ञ करो-धार्मिक केळवणी आपो, के जेथी तमारु अहिक ने आमुष्मिक बने प्रकार- हित थाय. तथास्तु ! . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005585
Book TitleTriji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Chunilal Vaidya
PublisherReception Committee
Publication Year1906
Total Pages266
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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