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________________ (८८) खीलवणीथी धनवंत थतो जाय छे. पच्चीश वर्ष उपरनु नानकडं जापान केळवणीनाज बळे वधी जइ महान् रशीअन राजनी सामे टक्कर झीली रयुं छे. पारसी कोम पण केळवणीने लीधेज आजे आगळ वधेली छे. देशसेवा बजावनार मानवता दादाभाई नवरोजजी अने फीरोजशा महेता जेवा नर रत्नो पेदा कर्या छे. जे कुटंबना माणसो केळवाएलां होय छे तेओ पोतानो संसार केवो सुखमां गुजारे छे तेना जोइए तेटला दाखलाओ हरनीश आपणी नजरे पडे छे. . भाइओ! केळवणीनो ज्ञानीओए तृतीय लोचनं अर्थात् त्रीजी आंख कहेली छे. आ बे बाह्यचक्षुवडे तो आपणे फक्त चीजनुं रुपज जोइ शकीए छीए पण केळवणीरुपी अंतर चावडे तो तेनु खरेखरुं स्वरुप जाणी शकीए छीए. केळवणी बे प्रकारनी कहेवामां आवी छे. व्यवहारिक अने धार्मिक, व्यवहारिक केळवणी प्राप्त करवाथी आ संसारना सुखना साधनो आपणे सहेलाइथी मेळवी श. कीए छीए. अर्थ कहेतां पैसो अने काम कहेतां मननी इच्छाओ ए बे पुरुषार्थ केटलाक दरज्जे व्यवहारिक केळवणीथी प्राप्त करी शकीए छीए. धर्मनी केळवणी उपर छेल्ला चार पांच वर्ष थयां ध्यान अपाय छे. पण हजुं जोइए तेवू नहीं. संसारिक सुख व्यवहारिक केळवणीथी मळे छे, पण आत्मिक सुख तो धर्मनी पीछाणवगर मळवू बहु कठण छे. धर्मथीज आपणा आत्मानुं खरू स्वरुप पीछाणवाने आपणे शक्तिवान् थइए छीए, अने निती अने धर्मनो उत्तम मार्ग पकडी आ भवभ्रमणमाथी केटलेक अंशे मुक्त थइए छीए. माटे बाळकोने व्यवहारिक केळवणीनी साथे धर्मनी केळवणी आपवानी खास आवश्यकता छे. बंधुओ ! धर्मनी केळवणीनो समावेश फक्त पोपटनी माफक बे या पांच प्रतिक्रमण जीवविचार, नवतत्व आदी सूत्रो मोढे बोलतां शीखवामां थतो नथी. जैन ते कोण, तीर्थंकर कोने कहीए, आत्मा शुं छे, कर्म शुं छे, श्रावक कोने कहीए, आदी बा. बतोनुं ज्ञान दरेक बाळकने आपQ अने तेथी पोताना धर्मनुं स्वरुप यथाशक्ति समजाय ए धर्म केळवणीनो हेतु होवो जोइए. एवा केटलाक दाखलाओ जोवामां आवे छे के, पांच प्रतिक्रमण मोढे आवडतां होय पण प्रतिक्रमण शामाटे करवू तेनो ख्याल पण न होय. माटे हालमां अपाती धर्म केळवणीनी पद्धत्तिमा विद्वानोनी संमत्तिथी फेरफार करवानी आवश्यकता छे. धर्मनुं संगीन ज्ञान आपवाने शिक्षकोनी खोट छे ते खोट पूरी पाडवाने मुनीमहाराज धर्मविजयजी अने वेणीचंदभाइ आदि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005585
Book TitleTriji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Chunilal Vaidya
PublisherReception Committee
Publication Year1906
Total Pages266
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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