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________________ निर्णय प्रासाद ग्रंथमें छपवाकर बहुतही सुगम कर दिया है. उस मुवाफिक अपने सोलह संस्कार जरूर प्रचलित होना चाहिये, और धर्म शास्त्र के आज्ञा विरुद्ध जो हानिकारक रिवाज जारी हो गये है उनको बंद करना चाहिये. १६ सधर्मीको आश्रय--सधर्मी भक्तिके बराबर और कोई भक्ति नहीं है. धर्मी भाईका अपने घरपर आना अच्छा नसीबके उदयसे होता है. क्योंकि अपने लोगोमें यातो राज कारभारी या साहुकार या व्यापारी होते है. इसलिये नकतक समय ठीक रहा अपने अंदर गरीबाई आनेका कोई कारण नहींथा. परन्तु इन दिनोंके अतूट दुर्भिक्षोंने अपने बहुतसे भाइयोंकी, बहेनोकी और बच्चोंकी दुर्दशा बना दी है. और उनको इस वक्त किसी तरहका आश्रय नहीं है. न वह इस लायक है कि खुद अपनी सार संभाल कर सके. इस लिये ऐसे ऐसे जैनियोंकी सारसंभाल करके उनको आश्रय देना बहुतही जरूरी है. १७ जीवदया-इसही विषयके साथ मिलता हुआ जीव दयाका मा. मला है. जिस तरह पर निराश्रितको आश्रय देकर उनको धर्ममे दृढ करना जरूरी है वैसेही अपंग वृद्ध जीवोंका बचाना, उनको खाना पीना देना, उनकी सार संभाल करना अपने दयामयी धर्मका काम है. इसलिये जीव दयाकी तर्फ लक्ष देनामी अपनेको बहुत जरूरी है. सांसारिक व्यवस्थाकी तर्फभी नजर डालनेसे जाहिर होगा कि जीवकी रक्षा करनेसे किस कदर फायदे होते है. १८ कुसंपका त्याग करनेपर और आपसमें मेल बढाकर अपने इच्छित फलोको प्राप्त करने के बारेमें में उपर बहुत कुछ कह आया हूं. इस लिये यहां पर इतनाही कहना बस है कि इसको आपलोग सबसे पहिला स्थान अपने दिलोमें देवेंगे और इसकी जड मजबूत कायम करेंगे. इसके बाद आपके और और विचारे हुवे काम पार पड सकेंगे. १९ जैन डीरेक्टरी-अपने ब्रिटिश गवर्नमेंट और देशी राज्योमें जो हर दस साल लाखो रुपया खर्च करके मनुष्य गणना कीजाती है इसका मतलब यहही है कि इन राज्योके तावेमें रैयतकी संख्या, उनकी पृथक् पृथक् उमर, उनकी इलमिलियाकत, उनका धंधा रोजगारका हाल, उनकी सांसारिक और धार्मिक स्थिति वगैरह वगैरह मालुम होजावे. ताकि इस बात के मालुम होनेपर सर्व Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005585
Book TitleTriji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Chunilal Vaidya
PublisherReception Committee
Publication Year1906
Total Pages266
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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