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अज्ञानता और दूसरा गरीबी की हालत. परन्तु गरीबी होने परभी बहुतसी आशातना ज्ञान और विवेकके साथ पूजा करनेसे मिट सकती है. इस लिये जीर्ण मंदिरोद्धार करना करानाभी अपना मुख्य कर्तव्य है,
मालुम होता देखा गया
अपने कोमकी तरक्की के
१४ प्राचीन लेखोंका तल्लास – इतिहास के देखनेसे है कि अपने जैन धर्म और जैन समाजका पूरा इतिहास जहां तक नही मिलता है. अपने परम पूज्य महावीर भगवान के पहिले या पीछे किस किस महान् आचार्य वगैरहनें अपने धर्म और लिये क्या क्या महेनत उठाई हैं, कहां कहां अपने हक में अच्छी बातें हुई हैं, कहां कहांसे अपने हक मिले है, इत्यादि जब तक पुरानी शोध खोज नहो कुछ:मालुम नहीं हो सकता. इस अपनी तरक्की - मजबूती के वास्ते प्राचीन लेखोंका तल्लास कराना निहायत जरूरी है.
११ हानिकारक रिवाजोका त्याग - मिथ्यात्व सब पापोंका मूल है. जो प्राणी इसको सेवन करता है वह निश्चय करके इस संसार में परिभ्रमण करता रहेगा, और अशुभ कर्मों के उदयसे हमेशा दुःख पाता रहेगा. मिथ्यात्वको छोडकर सम्यक्त्वको अंगीकार करना ही चतुर आदमियोंका काम है. यह मिथ्यात्व अक्सर अज्ञानतासे पल्ले बंध जाता है. और एक दफे पल्ले बंधने के बाद फिर मुशकिल से छूटता है. क्योंकि जीव इसको अनादिकालसे सेवता हुवा चला आता है, इसलिये यह मिथ्यात्व जीवको प्रिय है. इस मिथ्यात्व के प्रवेश के कई रास्ते है. परन्तु मुख्य रास्ता उन हानिकारक रीति रिवाजोंके जारी रखनेसे हैं, कि जिनकी वजह से चीकणे अशुभ कर्म बंधते है, लोगमें हांसी होती है, और व्यर्थ पैसा खर्च होता है. जो रीतिरिवाज अपने धर्म शास्त्र के हुक्मके विरुद्ध प्रचलित हो गयेहे वेही हानिकारक है. उन रीतिरिवाजको सुधारकर शास्त्रानुसार उनसें प्रवर्तना यहही समझदार मनुष्यों का धर्म है. गत वर्षमें इसबारेमें जो ठराव हुआ है उस बातोंका जो जो स्थलमैं अमल न हुवाहो वहां अमल करना खास जरूरी है. पहिले अलबता कोई पुस्तक जैन रीति से विवाह करनेकी नहीं थी. अब वह पुस्तकभी प्रकट हो गई है. अपने लोगोंको जरूर है कि उस विधि मुवाफिक अपने सन्तानका लग्न करावे. इसके सिवा जो सोलह संस्कार अपने लोगोमें शास्त्र के मुवाफिक होना चाहियें उनको आन लोग छोड और भूल बैठें है. उन सोलह संस्कारों को बालबोधमें लिखकर तत्व
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