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________________ त्न करो. इसी तरह पर उस वख्त तक प्रयत्न किये जाओ कि जब तक तुम उस कामको पूर्ण न करलो. इस नसियतके मुवाफिक जो पुरुष या समाज या संघ काम करनेमें लगे ही रहते है वह जरूर अपने विचारे हुए काममें विजयवन्त होते है. कइ सबबोसें संप्रति कालमें अपनी गिरी हुई दशाकुं देखकर उसके सुधारेके लिये इन दिनोमें जो कोशीस अपने स्वामिभाई तन मन धनसे कर रहे हे वे स्तुतिपात्र है. और जो धार्मिक और सांसारिक सुधारों पर लक्ष दीया जाता है वह सब परोपका. रार्थही है. और इस शुभ कामकी नीव डालने और पुष्टि करनेके लिये श्रीफलोधि तीर्थोन्नति सभा और श्रीमुंबईके श्रीसंघने जो प्रयास लिया है और उसकु फलीभूत करनेकी गरजसे बडोदेके श्रीसंघने जो कोशीस कीहै और हिंदुस्थानके कुल प्रांतोके जैन समाजनें हर वख्त अपनी तरफसे प्रतिनिधि भेजकर जो उत्कंठा और उत्साह दिखलाया है इससे मुझे दृढ निश्चय होता है कि गुरुकी कृपासे इस महासभाकी योजनाने जैन भाइयोकों अपने कर्तव्य संबंधमें विचार करनेको प्रवर्तित किया है और मनुष्यों के मुवाफिक अपने धर्मस्थान, धर्मग्रन्थ, धर्मगुरुओ, और स्व. धर्मि भाइयोप्रति अपनी कर्त्तव्यताके तरफ ध्यान खेंचाया है. इस उत्सवके लिये में अपने अंतःकरणसे दिलकी उमंगके साथ कुल जैन समुदायकों धन्यवाद देता हूं और आशा करता हूं कि आप सब साहेब मेरे साथही साथ इस मुबारकबादीमें शामिल होगे. ४ दीर्घ कालसे स्वार्थसाधकताकी लगी हुई बुरी चाल धीमे धीमे दूर क. रना, संघका हित किस तरहसे होवे इसका चिंतन करना, और जो काम करनेकी आवश्यकता है उस काम करनेको प्रवृत्त हो कर इसके फलके वास्ते अधीरा न होना उचित है. हमेशां इस वचनामृतकों याद रखना चाहिये कि, “ हर रस्ता साफ नही है. हर फुल विना कांटां नहीं है." अगरचे इस वख्त जिस रस्तेमें अपन चल रहे है और जिस फुलको अपननें हाथमें धारण किया है वो साफ और बिना कांटाकां मालूम दे रहा है; परन्तु गाफिल रह जानेसे या हो जानेसे वही रस्ता और फुल कांटेदार हो सकता है. और उसको साफ करनेकी फिर कोशीस करनमें बडी अडचन होती है. यद्यपि यह रस्ता इस वरूत साफ दिखलाइ देता है परन्तु आयंदा इसको साफ नही रखोगे तो अपने इच्छित स्थानको हरगिज नहीं पहुंचोगे. इस रस्तमें क्रोध, मान, माया, लोभ, इर्षा, द्वेष, कलह, मिथ्याभिमान, कुसंप व गैरह प्रकृतिवाले खुटेरे बहुत मिलेगे कि जिनसे बच कर चलना और इनको प्रतिबोध दे कर सुमार्गमें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005585
Book TitleTriji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Chunilal Vaidya
PublisherReception Committee
Publication Year1906
Total Pages266
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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