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________________ ( ५५ ) छाना हर सच्चे जैन धर्मानुयायी भाइकी उत्कृष्ट फरज है. सब काम संप और ऐक्यतासे हो सकता है. जहां संप है वहांही ताकत है. जहां संप नहीं वहां हानि है संप और कुसंपके ऊपर हजारो दृष्टांत है कि जिनसे संपके फायदे और कुसंपके नुकसान सिद्ध होते है. अपने श्रीमंत और धनाढ्य जैनीभाइ गरीब जैनीभाइयो के स्तंभ है और गरीब जैनमाइ धनाढ्य जैनियोके हर वख्त मददगार है. यह दुनिया ही परस्परकी मदद और सहायता से चलती है. तो फिर इस स्वाभाविक नियमको अपन अपने हाथसे क्यों छोडे ? इस जैन समाजरूपी पुरुषको जो जैनी इस वख्त भरतखंड में मोजुद है वह सब अंगोपांग है और सब अपना अपना काम करके इस सामाजिक पुरुषको पुष्टकर रहे है. अगर किसी मनुष्यको अंग या उपांगमें दर्द होता है तो उस मनुष्य के सारे बदन में असर होता है. इसी तरह पर इस जैन समाजके एक अंग या उपांगकोभी तकलीफ हुई तो सारी समाज पर उसका असर पडेगा, और इन तकलीफों और दिक्कतों को मिटाने के लिये ही तो यह जैन श्वेताम्बर महासभा कायमकी गई है. अगर्चे मेनें इस दृष्टांत से आपका बहुत समय रोका है परंतु इस बातकों इस जलसे में पुख्त तौरपर सबके दिलोंमें जमाने की बहुत ही जरूरत है. इस कॉन्फरन्सके कुल कारवाइका परिणाम आपसके संप पर है और यह संप " जैसा दो वैसा लो " यह नीतीको ग्रहण करमे से बढ सकता है. मेरे एक सच्चे दोस्तने इस कॉन्फरन्सकी कायमीके लिये मुझे एक सच्ची नसीयत इन शो में कही है कि जिनको हर जैनी भाईको अपने हृदय में रखनी चाहिये. यह नसीयत यह है, " बडेको बडी धीरज और गंभीरता रखनी चाहिये. बडेको विकार नही होना चाहिये. " यह वृद्ध वचन खरा करना. कॉन्फरन्समें आपको मान जियादा मिले या कमती मिले, आपकी मरजीका सवाल यदि उड गया, यदि चिन मरजी के सवाल पर ठराव हुआ तो उस वरूत लेशमात्र कुंद नहीं होना. अपने न्यायके सवाल पर दृढ रहना. परंतु कॉन्फरन्सकों नुकसान पहुंचे वैसी जिद बिचारना मुनासिब नही है. इस लिये सबसे पहले आप साहेबोसे मेरी यह प्रार्थना है कि, इस सर्व साधारण सामाजिक कार्यकुं आप सब मिलकर फलीभूत करे. इसमें छोटे बडेका या धनाढ्य गरीबका या उत्तर दक्षिणका कुछ भेद भाव नहीं आना चाहिये. बल्कि श्रीमंत अपनी दोलत के बलसें, बुद्धिमान् अपनी बुद्धिके बलसें और शक्तिवान् अपने तनके बलसें इस सर्व साधारण श्रेय काममें तनमनधनसें मदद देकर संपकी वृद्धि करके जैन धर्मकी ध्वजा फरकाते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005585
Book TitleTriji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Chunilal Vaidya
PublisherReception Committee
Publication Year1906
Total Pages266
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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