________________
करके उस स्वाभाविकी बातकों, जो हरचीज में देखी जाती है, अच्छी तरह पुष्ट कर दिया है. हर वस्तुके तीन समय अवश्य होते है. जिस चीजका आदि है उसकी स्थिति हो कर अन्त भी है और पौद्गलिक पदार्थ एक रूपसे नष्ट होकर दुसरा रूप जरूर धारण करता है. प्राचीन इतिहास पर नजर डालनेसें मालुम होता है कि, समय पाकर अपने अपने बलवीर्य और पराक्रमकी कमीवेशीके मुवाफिक और पूर्व संचित शुभाशुभ कर्मानुसार धार्मिक और सांसारिक कृत्योकी व्यवस्था होती रही है. और हर मुल्कमें हर जातमें और हर धर्ममें उन्नति और अवनति जरूर देखनेमें आइ है. अपने देशकी प्राचीन रीतिरिवाज, राज्य, धर्म, दौलत, वैभव पर नजर डालो और इस प्राचीन दशाकी इस समयके साथ मुकाबला करो तो अच्छी तरहसें निर्णय हो जायगा कि थोडेसें कालमें हिंदोलेके पालनेकी जैसे उपरका पालना नीचे और नचिका पालना उपर होगया है. हमारे हिंदुस्थानके मुशील राजा महाराजाओकों तथा धर्मज्ञ शेठ साहुकारोंकों स्वप्नतकमें ख्याल नहीं हो सकताथा कि जिस धर्म और वैभवका वे प्रतिपालन कर रहे थे उसकी यहां तक अवनति होगी. हाथ कंकणकों आरसीकी जरूरत क्या ? प्रत्यक्षमें अनुमानकी जरूरत क्या ? इतिहास इस जमानेकी फेरफारको अच्छी तरह साबित कर रहा है. और इस बात अपनेक मंजूर करनाही पडता है. अपना श्रीमान् श्रद्धालु श्रावक वर्गकी धर्म पर आस्था उन देवमयी महान् अद्भुत अर्बुदाचल, राणकपुर, तारंगा, गिरिनार, सिद्धक्षेत्र, सम्मेत शिखरके मंदिरों और भव्य जिन प्रतिमाओंसे सिद्ध होती है. यह कुल बातें इन बातकी सूचना दे रही है कि प्राचीनकालमें हमारे समुदायकी व्यवस्था उत्तम प्रकारकी थी और इस वख्तकी व्यवस्था वैसी नहीं है. इस लिये स्वात्मार्पण करके अपने अपने कर्त्तव्यमें बन शके उतना प्रयत्न करते रहना चाहिये. ऐसा सज्जन पुरुषोका एकत्र मिलाप जनसमूहके सच्चे हित खातिरही होता है. इस अनुसार अपने महत् पुण्य योगसें प्राप्त हुआ, यह मांगलिक प्रसंग जैन शासनके स्थायी अभ्युदयके लिये होय तोही अपने मिलापका परिणाम और प्रयत्नकी सार्थकता कहलावे.
३ अपने जिस कामको शुरु किया है अगर एक दफे वह काम पूर्ण नहीं हो शके तो निराश होकर मत बैठो, बल्कि फिर प्रयत्न करो और उस कामकों पार पटकनेपर कमर बांधो, फिरबी वह काम पार न पडे तो तीसरी मरतधे प्रयः
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org