SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२) निशाणी २. श्री तीसरी जैन श्वेताम्बर कॉन्फरन्सके प्रमुख रायबहादुर बाबुसाहेब बुधसिंघजी दुधोडिया अझीमगंज-मुर्शीदाबाद निवासीका भाषण, अर्हन्तो भगवन्त इन्द्रमहिताः सिद्धाश्च सिद्धिस्थिता । आचार्या जिनशासनोन्नतिकराः पूज्या उपाध्यायकाः श्रीसिद्धांतसुपाठका मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलम् ॥ १ ॥ श्रीमन्त महाराजा साहेब, स्वधर्मि भाइयो, बहेनो, तथा महेरवान साहेबो ! में सविनय आपको प्रणाम करता हूं और साथही साथ आपकी उस कृ. तज्ञता, दयालुता और धर्मस्नेहको अभिनंदन करता हूं कि जिसको भली प्रकारसे मुझको इस श्रीजैनश्वेताम्बर कॉन्फरन्सके तृतीय वार्षिक अधिवेशनका अधिपति चुनकर जाहिर की है. में अच्छी तरह जानता हूं कि इस भारतवर्षके पूजनीय श्रीप्तं घमें मुझसे ज्यादा समझदार, अनुभवी, विद्वान, बुद्धिमान् , श्रीमन्त, इज्जतवाले धर्मात्मा कई भव्य प्राणी मोजुद हैं और उनमें से कोइ योग्य पुरुषपर इस दुर्लभ्य इज्जतका मुकुट रखा जाता तो समयानुसार उचित होता. परन्तु श्रेष्ट जन दुसरेके दूषणो तरफ नजर न डालकर उसके गुणग्राही होते हैं. पारसका स्वभावही यह है कि लोहको अपने साथ लेकर आप जेसा स्वच्छ बना लेता है. इस लिये मेरे हृदयकुंभी संतोष हो गया है कि, यद्यपि में इस भारी बोझ उठानेकुं समर्थ नहीं हूं परंतु आप साहेबोकी मददसें इस कार्यमें उद्यमवन्त बनता हूं और परमात्मासे प्रार्थना करता हूं कि उनकी कृपासे मेरी आशा सफल हो.' २ मेरे प्यारेभाइयो, जमाना हमेशा एक हालत पर नहीं रहेता है, और अपने धर्मोपदेष्टाओने एक कालचक्रके दो विभाग, उत्सार्पणी और अवसर्पिणी, और फिर उन दो विभागो में भी छै छै आरे घटते बढ़ते सुख दुःखके कायम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005585
Book TitleTriji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Chunilal Vaidya
PublisherReception Committee
Publication Year1906
Total Pages266
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy