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________________ ६७ 66 एक तो जैनसमाज व्यापारप्रधान, आर्थिक दृष्टिए तद्दन स्वाधीन होय एवा लोको गण्यागांठ्या, मध्यमवर्गीय बधा जैनोने कॉन्फरन्समां सम्मिलित करवानी दृष्टि, साधुओना अन्दरोअन्दरना पक्षभेद अने तेने लीधे श्रावकवर्गमां पडती फूटना कॉन्फरन्स उपर पडता प्रत्याघातो - आ बधुं कॉन्फरन्सनी दृष्टि, शक्ति अने प्रवृत्तिने मर्यादित करनारुं पहेलेथी ज हतुं अने हजीये छे. दिशामां विचारस्वातंत्र्यनो पवन फूंकातो होय, प्रवृत्ति देशमां विकसती जती होय अने बीजी बाजुथी कॉन्फरन्स ए साथै ताल मेळवी न शकती होय तो साचा धगशवाळा कार्यकर्ताने मूंझवण थाय. एक बाजुथी बघी अनेक उपयोगी "" दशमा मुंबई अधिवेशनना प्रमुख डॉ. बालाभाई मगनलाल नाणावटीए तो पोताना प्रमुख तरीकेना व्याख्यानमां एटले सुधी कह्युं छेके, " कॉन्फरन्स ए जैन कोमनुं जीवनबळ छे. कोमनी अंदर जे अनहद शक्ति, गौरव, सामाजिक बळ अने प्रगतिनो जुस्सो आवी रहेलां छे ते दर्शावनारी संस्था छे. ते जैन कोमना उत्तम विचारों, उत्तम केळवणी, सामाजिक सुधारो अने अनहद धर्मज्ञान प्रवर्तावनार मंडळ छे. वळी जैन कान्फरन्स हिंदुस्तानमां मळती बीजी घणी कॉन्फरन्सोनी माफक मात्र त्रण दिवस मळी ठरावो करी वीखेर । ई जनारी संस्था नथी. आ संस्था कोमना हितार्थे हरहमेश काम करे छे. कॉन्फरन्सना बंधारण विषे तेणे कह्यं के, "" " कॉन्फरन्सना हेतु पार पाडवाना साधनरुप संस्थाने ( Working unit ) तरीके मुख्यत्वे संघने ज स्वीकारवामां आव्यो छे; एटले कॉन्फरन्सनुं स्थानिक काम जे ते स्थानना संघनी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005582
Book TitleJain Shwetambar Conferenceno Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagkumar Makatai
PublisherSohanlal Madansinh Kothari
Publication Year1960
Total Pages216
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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